‘क्या आप में से किसी के पास 500 के छुट्टे हैं?’ शायद आपने ऐसा सवाल किसी सब्जी मंडी में सुना होगा। संभवत: 12-14 साल उम्र के एक विक्रेता से, जो अपनी उम्र के अन्य बच्चों के साथ यह सवाल पूछ रहा होता है। आप सोच में पड़ सकते हैं कि ये बच्चे सब्जी मंडी में क्या कर रहे हैं? दिलचस्प यह है कि ये युवा विक्रेता महज एक ही सब्जी बेचते हैं। जब आप इन विक्रेताओं को यह वादा करते सुनते हैं कि ‘मां जी, यह सब्जी हाथों से उगाई है, मैं रोजाना इसमें पानी देता हूं, तभी ये ऐसे उग पाई– तो शायद आप उस पर यकीन ना करें और आपके चेहरे पर एक शंकापूर्ण मुस्कान आ जाए। आपको लग सकता है कि इतनी कम उम्र में ये बच्चे झूठ बोलने लगे हैं। लेकिन यकीन मानिए, वे झूठ नहीं बोल रहे और उनका हर शब्द सच है। सोमवार से शुक्रवार तक ये छात्र स्कूल पहुंचते ही जल्दी से बस्ते अपनी-अपनी बेंच पर फेंक देते हैं। उत्साहित होकर ये देखने के लिए किचन गार्डन्स की ओर दौड़ पड़ते हैं कि उनके बोए बीज कैसे अंकुरित हुए हैं। पौधा कैसे बढ़ रहा है और सब्जियां कैसे बड़ी हो रही हैं। ये सभी विक्रेता उन जिला परिषद स्कूलों के हैं, जहां विद्यार्थी टमाटर, पालक, बैंगन, मिर्च, फूलगोभी और पत्तेदार सब्जियां बोते हैं और उनकी देखभाल करते हैं। वे जानते हैं कि किचन गार्डन को कैसे बनाए रखना है। ये गार्डन सब्जी के खेत से बढ़ कर हैं, क्योंकि ये मिड-डे मील के लिए ताजा सब्जियां पैदा करते हैं। कृषि-पर्यावरण के सबक सिखाते हैं। रचनात्मकता प्रेरित करते हैं और छात्रों को कठिन विषयों को समझने में मदद करते हैं। ये कहानी बहुत पहले पुणे के संगमनेर जिला परिषद स्कूल में राजर्षि शाहू एजुकेशन इनिशिएटिव के तहत शुरू हुई। आठवीं के छात्र और गार्डन प्रभारी शुभम काथमोरे जैसे कई छात्रों के लिए किचन गार्डन की ये पहल जीवन का अहम हिस्सा बन गई है। पुणे के एक अन्य तालुका खेड़ में जिला परिषद स्कूल के छात्र सक्रिय रूप से साप्ताहिक बाजार में भी हिस्सा लेते हैं, जहां वे किचन गार्डन के उत्पाद बेचते हैं। इस तरह की देखभाल से ना केवल बच्चों में जिम्मेदारी का भाव पैदा हो रहा है, बल्कि उनकी गणित भी तेज हो रही है। यह विचार सरल, किन्तु ताकतवर है। प्राथमिक शिक्षा के राज्य निदेशक सुरेश गोसावी का कहना है, ‘वे स्कूल परिसर में ताजी सब्जियां उगाते हैं और उन्हें मिड-डे मील में इस्तेमाल करते हैं। परिणाम दिल खुश करने वाले हैं- बच्चों के लिए सेहतमंद भोजन, खेती के व्यावहारिक सबक और छात्रों में स्वामित्व और रचनात्मकता की भावना।’ बीते दो वर्षों में किचन गार्डन इतने बढ़ गए हैं कि मिड–डे मील में उपयोग के बाद भी हर शनिवार को स्थानीय बाजार में दो घंटे की स्टॉल लगाने के लिए काफी सब्जियां बच जाती हैं। इससे हुई आय बगीचे की सार-संभाल, उपकरण और अन्य जरूरी चीजें खरीदने में खर्च होती है। वयस्कों में यह भावना लाने के लिए बेंगलुरु ने एक नई पहल शुरू की है। अनार उत्पादक किसानों ने येलहंका में अपनी तरह का पहला अनार फार्म पर्यटन शुरू किया है, जहां बेंगलुरुवासी अब बागान से सीधे ताजा अनार तोड़ने का मजा ले सकते हैं। इस शनिवार शुरू हुई यह आदर्श पहल ‘अपना फल तोड़ें, फार्म में घूमें और ताजा पैदावार घर ले जाएं’ के नारे के साथ लोगों को खूब लुभा रही है। इसमें छुट्टी के आनंद के साथ सेहतमंद जीवन का भाव भी जुड़ा है। सुबह 6:30 से शाम 6:30 तक विजिटर्स के लिए खुली इस प्रयोगात्मक पहल को जबरदस्त रेस्पाॅन्स मिला। पहले ही दिन बड़ी संख्या में लोग कृषि और कृषकों के सीधे जुड़ाव के इस दुर्लभ अवसर का आनंद लेने के लिए उमड़ पड़े। याद रखें कि अपने परिवार के लिए हाथ से फल तोड़ने का आनंद कुछ ऐसा है, जो उन्हें कोई सुपरमार्केट नहीं दे सकता।