हम सब की जिंदगी में ऐसे पल आते हैं, जब भावनाएं हमारे काबू में नहीं होती हैं। कभी हम गुस्से में आकर कुछ ऐसा कह देते हैं, जिससे बाद में पछतावा होता है। कभी डर हमें आगे बढ़ने से रोक देता है या खुशी में हम ऐसे फैसले ले लेते हैं जो गलत साबित होते हैं। क्या आपने कभी सोचा कि अगर हम अपनी भावनाओं को समझें और उन्हें सही तरीके से हैंडल करें, तो जिंदगी कितनी आसान हो सकती है? आज की तेज रफ्तार दुनिया में टेक्निकल स्किल्स तो सबके पास हैं, लेकिन असली सफलता उन्हें मिलती है जो इंसानों से कनेक्शन बिल्ड करना जानते हैं। इसे ही इमोशनल इंटेलिजेंस या इमोशनल कोशेंट कहते हैं। EQ का मतलब है अपनी और दूसरों की भावनाओं को पहचानना, समझना और उन्हें सही दिशा में इस्तेमाल करना। ये सिर्फ किताबी बात नहीं है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की रिसर्च बताती है कि हाई EQ वाले लोग ज्यादा इनोवेटिव होते हैं और अपनी जॉब से संतुष्ट रहते हैं। वे पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ दोनों में बेहतर रिजल्ट्स पाते हैं। इमोशनल कोशेंट रिश्ते बनाने, उन्हें निभाने और दूसरों को प्रभावित करने में मदद करता है। चाहे आप स्टूडेंट हों या जॉब कर रहे हों, EQ आपकी सफलता की चाबी बन सकता है। आज 'सक्सेस मंत्रा' कॉलम में हम इमोशनल इंटेलिजेंस पर बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि- लो EQ के क्या नुकसान हैं? भावनाओं पर कंट्रोल न होने से हमारे दिमाग और जिंदगी पर जहर जैसा असर होता है। शुरुआत में ये छोटी बातें लगती हैं, लेकिन धीरे-धीरे ये हमें कमजोर बना देती हैं। मिसाल के तौर पर, अगर ऑफिस में बॉस की डांट पर आप गुस्से में आकर जवाब देते हैं तो रिश्ते बिगड़ सकते हैं। घर में छोटी बहस बड़ी लड़ाई बन सकती है। लो EQ वाले लोग अक्सर अपनी भावनाओं में बह जाते हैं, जिससे उनके फैसले प्रभावित होते हैं। खुद पर भरोसा कम हो जाता है जब भावनाएं कंट्रोल से बाहर होती हैं, तो हम अपनी काबिलियत पर शक करने लगते हैं। जैसे, अगर कोई प्रोजेक्ट फेल हो जाए, तो लो EQ वाला इंसान सोचता है 'मैं तो कुछ नहीं कर सकता'। इससे आगे की कोशिशें रुक जाती हैं। तनाव बढ़ता है सोशल मीडिया पर दूसरों की सफलता देखकर जलन होती है। लो EQ में हम इसे हैंडल नहीं कर पाते, नतीजा उदासी और स्ट्रेस। ये नींद छीन लेता है और हेल्थ खराब करता है। रिश्ते टूटने का खतरा होता है भावनाओं को न समझने से हम दूसरों की फीलिंग्स को इग्नोर कर देते हैं। दोस्त या फैमिली के साथ छोटी बात पर झगड़ा हो जाता है। लो EQ वाले लोग अक्सर अकेले पड़ जाते हैं। फैसले प्रभावित होते हैं गुस्से या डर में लिए फैसले अक्सर गलत साबित होते हैं। जैसे, जॉब छोड़ने का फैसला भावुक होकर लेना, बाद में पछतावा। सफलता देर से मिलती है लो EQ से टीमवर्क नहीं होता, लीडरशिप नहीं आती। रिसर्च कहती है कि हाई EQ वाले लोग जल्दी प्रमोशन पाते हैं। लेकिन अच्छी बात ये है कि EQ को बढ़ाया जा सकता है। इमोशनल इंटेलिजेंस क्यों जरूरी है? EQ हमारे दिमाग को नई ताकत देता है। ये हमें भावनाओं से लड़ने की हिम्मत देता है और सफलता की ओर ले जाता है। हर इंसान की जिंदगी अलग है, लेकिन EQ से हम मुश्किलों को आसान बना सकते हैं। ये रिश्ते मजबूत करता है, लीडरशिप स्किल्स बढ़ाता है और मेंटल हेल्थ सुधारता है। असली बदलाव खुद से शुरू होता है अपनी भावनाओं पर ध्यान दें। अगर गुस्सा आ रहा है, तो उसे पहचानें और रोकें। ये छोटा कदम बड़ा फर्क ला सकता है। छोटे बदलाव से मिलती है बड़ी जीत हर दिन EQ पर थोड़ा काम करें, तो साल भर में आपका माइंडसेट बदल जाएगा। लो EQ और हाई EQ में फर्क देखिए। EQ के मुख्य कॉम्पोनेंट्स क्या हैं? EQ कोई जादू नहीं, बल्कि चार मुख्य हिस्सों का खेल है। इन्हें समझकर हम इसे बेहतर बना सकते हैं। इन्हें विस्तार से समझेंगे, इससे पहले ग्राफिक देखिए। सेल्फ-अवेयरनेस बढ़ाएं ये EQ की बुनियाद है। अपनी भावनाओं को पहचानना और उनका असर दूसरों पर समझना। जैसे, अगर आप उदास हैं, तो जानें क्यों और ये आपके व्यवहार को कैसे बदल रहा है। सेल्फ-रेगुलेशन जरूरी भावनाओं को जानने के बाद उन्हें मैनेज करें। तनाव में गहरी सांस लें, गुस्से में बोलने से पहले सोचें। ये आपको शांत रखता है। सोशली अवेयर रहें इम्पैथी यानी दूसरों की फीलिंग्स समझना। जैसे, दोस्त दुखी है तो उसकी मदद करें, न कि इग्नोर करें। सोशल स्किल्स बेहतर करें प्रभावित करना, टीमवर्क, कॉन्फ्लिक्ट सॉल्व करना। ये स्किल्स लीडर बनाती हैं। EQ कैसे बढ़ाएं? EQ बढ़ाना आसान नहीं, लेकिन प्रैक्टिकल तरीकों से मुमकिन है। आइए जानते हैं। अपनी भावनाओं को पहचानें आप क्या महसूस कर रहे हैं- गुस्सा, खुशी या डर? नाम देने से कंट्रोल आसान होता है। तनाव में पूछें, 'मैं क्या फील कर रहा हूं?' फीडबैक लें दोस्तों, फैमिली या बॉस से पूछें कि आपकी EQ कैसी है। जैसे, 'मुश्किल में मैं कैसे रिएक्ट करता हूं?' इससे सेल्फ-अवेयरनेस बढ़ती है। लिटरेचर पढ़ें किताबें पढ़ने से इम्पैथी बढ़ती है। कहानियां दूसरों के नजरिए से सोचना सिखाती हैं। डेनियल गोलेमैन की 'इमोशनल इंटेलिजेंस' जैसी किताबें पढ़ें। माइंडफुलनेस प्रैक्टिस करें मेडिटेशन से वर्तमान में रहना सीखें। भावनाओं को जज न करें, सिर्फ ऑब्जर्व करें। इम्पैथी डेवलप करें दूसरों की जगह खुद को रखकर सोचें। 'वे क्यों ऐसा फील कर रहे हैं?' ये रिश्ते मजबूत करता है। कॉन्फ्लिक्ट को हैंडल करें अगर आसपास कोई झगड़ा होता है तो शांति रखें। सामने वाले तो सुनें और सॉल्यूशन ढूंढें। ये टिप्स रोज अपनाएं, बदलाव महसूस होगा। EQ की ताकत EQ दिमाग को रीप्रोग्राम करता है। ये तनाव कम करता है, रिश्ते बेहतर बनाता है। रिसर्च कहती है कि हाई EQ वाले लोग लीडरशिप में आगे रहते हैं। लीडरशिप में EQ लीडर्स EQ से टीम को मोटिवेट करते हैं। जैसे, मुश्किल में इम्पैथी से ही ट्रस्ट डेवलप करते हैं। प्रेरणा की मिसाल हैं ये सफल लोग जैसिंडा आर्डर्न न्यूजीलैंड की पूर्व प्रधानमंत्री, क्राइसिस में इम्पैथी और शांति से डील करती रहीं। उन्होंने कहा, EQ से रिश्ते बनते हैं और बने रहते हैं। महात्मा गांधी भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अहिंसा और इम्पैथी से दुनिया बदली। उनके हाई EQ ने ही उन्हें महान नेता बनाया था। सुंदर पिचाई गूगल के CEO, हाई EQ से टीम मैनेज करते हैं। वे कहते हैं, भावनाओं को समझना ही सक्सेस की कुंजी है। EQ से नेगेटिव भावनाओं को अलविदा कहें EQ एक जाल तोड़ने जैसा है, जो हमें रोकता है। लेकिन छोटी आदतों से हम इसे जीत सकते हैं। भावनाओं को कंट्रोल करें, रिश्ते बनाएं और सफलता पाएं। याद रखें, आपका EQ आपका सबसे बड़ा साथी है। आज से शुरू करें, जिंदगी बदल जाएगी। ........................ सक्सेज मंत्रा की ये खबर भी पढ़िए सक्सेस मंत्रा- सपनों को पूरा करने का एक्शन प्लान: कैसे SMART टेक्नीक से तय करें लक्ष्य, एक फिक्स टाइम लिमिट में करें अचीव सपने देखना हर इंसान की फितरत है। बचपन में हम डॉक्टर बनने, इंजीनियर बनने या बिजनेस शुरू करने के सपने देखते हैं। बड़े होकर शायद दुनिया घूमने या अपने परिवार को सुखी देखने की चाहत रखते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि कुछ लोग अपने सपनों को सच कर दिखाते हैं, जबकि कुछ सिर्फ ख्वाबों में ही खोए रह जाते हैं? पूरी खबर पढ़िए...