सवाल- मैं कानपुर से हूं। हाल ही में मैंने अखबार में एक दर्दनाक खबर पढ़ी कि 14 साल के एक लड़के ने अपने माता-पिता की डांट से आहत होकर खुदकुशी कर ली। इस घटना ने मुझे भीतर तक झकझोर दिया है। मेरा भी एक 15 साल का बेटा है। कभी-कभी गुस्से में मैं भी उसे डांट-मार देता हूं। अब इस घटना को जानने के बाद मेरे मन में तरह-तरह के नेगेटिव ख्याल आ रहे हैं। लेकिन सच कहूं तो मुझे समझ नहीं आता कि डांटे-मारे या सख्ती किए बिना बच्चे को कैसे सही रास्ते पर लाया जा सकता है। मैं यह जानना चाहता हूं कि किस तरह का व्यवहार बच्चों के आत्मसम्मान और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर डाल सकता है? गुस्सा आने पर हम कैसे खुद को कंट्रोल करें और अगर बच्चा गलती करे तो उसे सुधारने के लिए कौन-सा तरीका अपनाना सही रहेगा? कृपया मेरा मार्गदर्शन करें। एक्सपर्ट: डॉ. अमिता श्रृंगी, साइकोलॉजिस्ट, फैमिली एंड चाइल्ड काउंसलर, जयपुर जवाब- मैं आपकी चिंता समझ सकती हूं। आपने जिस तरह से एक घटना को नोटिस करते हुए यह सवाल पूछा है। ये इस बात का संकेत है कि आप एक जागरूक पेरेंट हैं। ये साइकोलॉजिकल फैक्ट है कि बार-बार की डांट-मार से बच्चे जिद्दी, गुस्सैल या डरपोक हो जाते हैं। लेकिन आत्महत्या जैसा कदम उठाने का मतलब है कि बच्चे को कोई भी रास्ता नहीं नजर आता है। ऐसे में यहां सबसे पहले ये समझना जरूरी है कि ऐसी खबरें सिर्फ घटना का एक पहलू दिखाती हैं। कभी भी कोई बात इतनी सिंपल नहीं होती है, जितनी वह ऊपर से दिख रही होती है। हो सकता है कि इस केस में बहुत ज्यादा डांट-मार या वायलेंस रहा हो। इसलिए सबसे पहले तो इस न्यूज से आप ट्रिगर न हों क्योंकि खबर की एक लाइन पूरी कहानी नहीं है। बच्चे को डांटने के पीछे होना चाहिए वैलिड कारण अब आते हैं आपके सवाल पर, जिसमें आपने बताया कि आप कभी-कभी बेटे को डांट-मार देते हैं। देखिए, पेरेंट्स ही बच्चे के पहले टीचर होते हैं। बच्चे की हर आदत और व्यवहार में उनकी परवरिश की छाप होती है। इसलिए जब वह गलती करता है तो स्वाभाविक है कि आप उसे सुधारना चाहेंगे। लेकिन इस सुधार के प्रयास में संतुलन बेहद जरूरी है। डांट तब असरदार होती है, जब वह किसी ठोस वजह से दी जाए और बच्चे को यह बात समझ भी आए कि उसे क्यों डांटा गया। अगर आप गुस्से में हैं, थके हुए हैं या किसी वजह से चिड़चिड़े हैं और उसी स्थिति में आपने रिएक्ट कर दिया तो बच्चा यह महसूस करता है कि गलती उसकी नहीं थी, फिर भी उसे झेलना पड़ा। इससे उसके मन में गिल्ट नहीं बल्कि दर्द और रिजेक्शन का भाव आता है। इसलिए ध्यान रखें कि जब भी आप बच्चे को टोकें या डांटें तो उसमें सुधार की भावना हो, अपमान या डर नहीं। बच्चे को समझ आए कि उसने जो किया, वह गलत क्यों था, तभी वह सीख सकेगा। वरना वह डांट उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचा सकती है और वह इसे एक घाव की तरह भीतर तक महसूस कर सकता है। इसके लिए सबसे पहले ये समझें कि आपका कौन सा व्यवहार बच्चे के मन में गलत विचार ला सकता है। उम्र के अनुसार बच्चे को समझाने का तरीका बदलें जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, वैसे-वैसे उसे सही-गलत समझाने का तरीका भी उम्र के अनुसार बदलना जरूरी है। हर बार चिल्लाना या आवाज ऊंची करना सही तरीका नहीं है। बिना गुस्सा किए सख्त लहजे में भी अपनी बात कह सकते हैं। असली समझदारी इसी में है कि बच्चे को डांटने के बजाय सही दिशा दिखाएं। जब भी आप उसे किसी गलती के लिए टोकें तो केवल सजा न दें। उसे उसकी गलती का एहसास कराएं और ये भी महसूस कराएं कि उसने जो किया, वह क्यों ठीक नहीं था और अगली बार उसे कैसे सुधारे। जब वह अपनी गलती को खुद समझने और स्वीकारने लगेगा, तभी उसमें जिम्मेदारी और सेल्फ कंट्रोल की भावना विकसित होगी। इसके साथ ही पेरेंट्स अपने गुस्से पर भी कंट्रोल करना सीखें। इसके लिए 10 बातों का विशेष ख्याल रखें। पेरेंट्स परवरिश में रखें इन बातों का ख्याल हर बच्चा गलतियां करता है और यही उसका सीखने का तरीका है। लेकिन जब पेरेंट्स हर गलती पर गुस्से से रिएक्ट करते हैं तो बच्चा डरने, छिपाने या खुद पर डाउट करने लगता है। अगर आप चाहते हैं कि वह आगे चलकर जिम्मेदार और समझदार बने तो हर गलती को सजा नहीं, एक सीखने का मौका मानें। इसके साथ ही पेरेंटिंग में कुछ और बातों का भी ख्याल रखें। आज के बच्चे भावनात्मक रूप से बहुत संवेदनशील हैं। वे टेक्नोलॉजी से जुड़कर सारी दुनिया देख रहे हैं, लेकिन अंदर से बहुत अकेले हैं। ऐसे में माता-पिता का रोल सिर्फ गाइड का नहीं, एक सपोर्टिव और सुरक्षित स्पेस देने वाले व्यक्ति का होना चाहिए। अंत में यही कहूंगी कि बच्चे किसी कच्ची मिट्टी की तरह होते हैं, जिन्हें आप अपने व्यवहार से आकार देते हैं। डांट-मार और डर से नहीं, समझदारी, धैर्य और प्यार से ही वे मजबूत, आत्मविश्वासी और भावनात्मक रूप से सुरक्षित बनते हैं। अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा आपकी बात माने तो पहले वो भरोसा जीतिए, जिससे वो खुलकर आपसे अपनी बात कह सके। याद रखिए बच्चों को सही राह पर लाने के लिए आपका साथ ही सबसे जरूरी है। ………………… पेरेंटिंग की ये खबर भी पढ़िए पेरेंटिंग- 7 साल की बच्ची मेकअप की जिद करती है: लिपस्टिक और नेलपॉलिश मांगती है, टीवी और दोस्तों से प्रभावित, उसे कैसे समझाएं दरअसल इस उम्र में बच्चे बहुत तेजी से अपने आसपास के माहौल को अब्जॉर्ब करते हैं। वहीं आजकल तो बच्चे यूट्यूब और सोशल मीडिया की दुनिया में पल-बढ़ रहे हैं, जहां उन्हें मेकअप, फैशन और ग्लैमर से जुड़े कंटेंट लगातार दिखते रहते हैं। इसका सीधा असर उनकी सोच, पसंद-नापसंद और सेल्फ इमेज पर पड़ता है। पूरी खबर पढ़िए...