महज 9 वर्ष की उम्र में उस महिला की शादी 30 साल के स्वतंत्रता सेनानी से हो गई थी। 31 वर्षीय अनुपर्णा रॉय की फिल्म की यह नायिका एक दलित लड़की है, जिसकी शादी एक क्रांतिकारी से हुई है। भले ही वह देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ रहा था, लेकिन अपनी पत्नी को आजादी नहीं दिला पाया। अनुपर्णा ने अपनी नानी से कई कहानियां सुनीं, जिनमें एक स्वच्छ नदी का जिक्र था। वह सोचती थी कि नानी ने शायद ये नदी देखी होगी, लेकिन उनकी मृत्यु के बाद ही अनुपर्णा को पता चल पाया कि असल में नानी ने तो कभी उसे देखा ही नहीं। केवल उनकी मृत देह ही नदी किनारे ले जाई गई। गहरे सामाजिक-राजनीतिक विरोधाभासों के साथ पारिवारिक यादों को पिरोना ही अनुपर्णा की चंद फिल्मों की पहचान रही है। आप कल्पना करें, ऐसी महिला, जो पोती को हर कहानी में एक पवित्र नदी के बारे में बताती है। उसे देखने का सपना रखती है, लेकिन कभी देख ही नहीं पाती। केवल उसकी मृत देह ने ही उसे देखा। ये विचार ही मुझे झकझोर देता है।पिछले हफ्ते उनकी पहली फीचर फिल्म ‘सॉन्ग्स ऑफ फॉरगॉटन ट्रीज’) रिलीज हुई। यह मुंबई में दो प्रवासी महिलाओं की कहानी है, जिनमें एक पार्ट टाइम सेक्स वर्कर और दूसरी कॉल सेंटर कर्मचारी है। पहले दोनों एक कमरा शेयर करने वाले अजनबियों जैसी होती हैं। धीरे-धीरे दोनों में एक सुखद रिश्ता बन जाता है। अनुपर्णा वेनिस फिल्म फेस्टिवल के ‘ओरिजोंटी’ सेक्शन में सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का खिताब पाने वाली पहली भारतीय बनीं और प्रख्यात ‘ऑटर्स’ की प्रतिष्ठित सूची में शामिल हो गईं। इसका अर्थ है, एक ऐसा फिल्म निर्देशक– जो अपनी फिल्मों पर इतना प्रभाव डालता है कि उसे उनके लेखक का दर्जा दिया जाता है। कोयला क्षेत्र के कर्मचारी और गृहिणी के घर पैदा हुईं अनुपर्णा की कहानी फर्श से अर्श तक पहुंचने के लिए जानी जाती है। पश्चिम बंगाल के पुरुलिया से उठकर वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जानी—मानी फिल्म निर्माता बनीं। उन्होंने किसी फिल्म स्कूल से ट्रेनिंग नहीं ली। अपनी फिल्मों का पैसा जुटाने के लिए आईटी और कॉल सेंटर में काम करती थीं। हाल ही जब मैं कुछ छात्रों को अनुपर्णा के बारे में बता रहा था तो एक छात्रा ने पूछा, ‘क्या मैं भी अनुपर्णा की तरह कम बजट में फिल्म बना सकती हूं?’ मैंने कहा, शायद बना सकती हो, लेकिन मुझे नहीं पता कैसे?उस शाम मैंने लगातार सर्च किया कि ओपन—एआई ऐसे महत्वाकांक्षी छात्रों की मदद कैसे कर सकता है। मुझे इसका नया टूल ‘DALL-E इमेज जेनरेशन’ मिला। यह बताता है कि जेनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हॉलीवुड में बनने वाली फिल्मों से तेज और सस्ती फिल्में बना सकता है। मई, 2026 में कान्स फिल्म फेस्टिवल में लॉन्च होने वाली ‘क्रिटरज’ फिल्म 2023 की प्रकृति संबंधी डॉक्युमेंट्रीज पर आधारित है। यह जंगल के जीवों की कहानी है, जो एक अजनबी द्वारा अपने गांव में अशांति पैदा करने के बाद एडवेंचर पर निकलते हैं। यह फिल्म ओपन—एआई के क्रिएटिव स्पेशलिस्ट चाड नेल्सन की उपज है। टीम फिल्म को अमूमन लगने वाले तीन साल की बजाय नौ महीने में ही बनाने की कोशिश कर रही है। बजट भी 30 मिलियन डॉलर से कम होगा, जबकि ऐसी एनिमेटेड फिल्मों की लागत 150 से 200 मिलियन डॉलर तक होती है। मजेदार यह है कि फिल्म पर काम करने वाले कुछ लोग तो ऐसे हैं, जिन्होंने पहले कभी एआई प्रोजेक्ट्स में काम नहीं किया। इससे स्वतंत्र सिनेमा में क्रांति आ जाएगी। एक दर्शक के तौर पर हम, मुझसे सवाल पूछने वाली छात्रा के जैसे और कई सारे लोग देखेंगे, जो बहुत सी कहानियां बताने में सक्षम होंगे। भले हॉलीवुड और बॉलीवुड रचनात्मक क्षेत्र में एआई के इस्तेमाल की सीमा को लेकर तीखी जंग में उलझें, लेकिन यह यकीनन अनुपर्णा और उस छात्रा जैसे कई अन्य रचनात्मक लोगों के लिए नए दरवाजे खोलने जा रहा है। फंडा यह है कि अगर आप एक छात्र हैं और किसी ऐसे क्षेत्र में जाना चाहते हैं, जिसमें बड़ा खर्च बाधा बन रहा है तो एआई का दरवाजा खटखटाएं। फिर देखना, यह नई तकनीक आपके सपने पूरे करने में कितनी मदद कर सकती है। कभी-कभी यह आपको हैरत में डाल सकती है।