खांसी कॉमन समस्या है। दुनिया का लगभग हर शख्स साल में एक-दो बार खांसी से परेशान होता है। खांसी वायरल इंफेक्शन से होती है और 1-2 हफ्तों में ठीक भी हो जाती है। इसके इलाज के लिए लोग अक्सर ओवर-द-काउंटर (OTC) कफ सिरप ले लेते हैं। बच्चों को इससे ज्यादा नुकसान हो सकता है। स्वास्थ्य मंत्रालय की एडवाइजरी है कि, 5 साल से कम उम्र के बच्चों को कफ सिरप नहीं देने चाहिए। इससे ज्यादा उम्र में भी डॉक्टर की सलाह के बिना कफ-सिरप नहीं लेने चाहिए। हाल में राजस्थान और अन्य राज्यों में कफ सिरप से बच्चों की मौत के मामले सामने आए हैं, जिससे सतर्कता बढ़ गई है। आज ‘जरूरत की खबर’ में जानेंगे कि खांसी का सही इलाज कैसे करें। साथ ही समझेंगे कि- एक्सपर्ट: डॉ. अरविंद अग्रवाल, डायरेक्टर, इंटरनल मेडिसिन एंड इन्फेक्शियस डिजीज, श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीट्यूट, दिल्ली सवाल: खांसी क्या है, कितने तरह की होती है? जवाब: खांसी, फेफड़ों और गले से गंदगी या बलगम निकालने का हमारे शरीर का एक प्राकृतिक तरीका है। यह कोई बीमारी नहीं, बल्कि लक्षण है। खांसी 2 तरह की होती है- सूखी खांसी अक्सर एलर्जी, अस्थमा या एसिड रिफ्लक्स से होती है, जबकि गीली खांसी सर्दी-जुकाम या इंफेक्शन से होती है। डॉ. अरविंद कहते हैं कि पहले खांसी की वजह पता करें, जैसे वायरल कोल्ड, एलर्जी या धुंआ। अगर वजह ठीक कर लेंगे तो खांसी खुद कम हो जाएगी। सवाल: बच्चों के लिए OTC कफ सिरप क्यों खतरनाक हैं? जवाब: छोटे बच्चों को कफ सिरप से गंभीर साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं, जैसे सांस धीमी पड़ सकती है, बेहोशी, उल्टी या गंभीर मामलों में मौत भी हो सकती है। अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स और भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय की एडवाइजरी के मुताबिक, 5 साल से कम बच्चों को कोई OTC सिरप नहीं देना चाहिए। इनमें कोडीन जैसे ऑपिऑइड्स होते हैं, जो बच्चों के लिए खतरनाक हैं। इनमें एंटी-एलर्जिक तत्व मिलाए जाते हैं, जिससे नींद बहुत आती है। वयस्कों को भी इससे नींद, चक्कर या दिल की धड़कन तेज होने जैसी समस्याएं हो सकती हैं। सवाल: शिशुओं (0-6 महीने) की खांसी का इलाज कैसे करें? जवाब: इस उम्र में कोई भी ओवर द काउंटर सिरप न दें। बच्चे को बार-बार दूध पिलाएं। अगर सांस में तकलीफ है, बुखार है तो तुरंत डॉक्टर से कंसल्ट करें। डॉ. अरविंद सलाह देते हैं कि मां का दूध सबसे अच्छा है, यह इम्यूनिटी बढ़ाता है। इसके अलावा डॉक्टर जो एक्शन प्लान बताए, वह फॉलो करें। सवाल: 6-12 महीने के बच्चों को खांसी होने पर क्या करें? जवाब: किसी भी तरह के कफ सिरप और शहद देने से बचें। अगर बुखार है, तेज सांस चल रही है, घरघराहट है या खाना कम खा रहा है तो पीडियाट्रिशियन से मिलें। डॉ. अरविंद कहते हैं कि इस उम्र में बच्चे ज्यादा एक्टिव होते हैं, लेकिन खांसी से थक जाते हैं। सूती कपड़े को हल्का गर्म करके सीने की सिंकाई कर सकते हैं। इसके अलावा डॉक्टर की सलाह को फॉलो करें। सवाल: 1-2 साल के बच्चों के लिए सुरक्षित उपाय क्या हैं? जवाब: बच्चों के लिए सभी OTC सिरप नुकसानदायक हैं। हल्का गर्म पानी, सलाइन ड्रॉप्स और ह्यूमिडिफायर बेहतर विकल्प हैं। अगर रात में खांसी बढ़ रही है, घरघराहट है या नींद में दिक्कत है तो पीडियाट्रिशियन से मिलें। सवाल: 2-4 साल के बच्चों को दवा कैसे दें? जवाब: सबसे पहले ये ध्यान रखें कि खुद से डॉक्टर न बनें। ओवर द काउंटर दवा न लें। पीडियाट्रिशियन की सलाह के अनुसार ही दवाएं दें। उससे पहले घरेलू उपाय में 2.5-5 एमएल शहद दे सकते हैं। अगर डॉक्टर कहते हैं कि दवा जरूरी है तो कंसल्ट करें। सवाल: 4-6 साल के बच्चों के लिए क्या सलाह है? जवाब: किसी भी तरह के मल्टी-इंग्रीडिएंट और डीकंजेस्टेंट्स अवॉइड करें। डॉ. अरविंद बताते हैं कि इस उम्र में बच्चे स्कूल जाते हैं, एलर्जी बढ़ सकती है। नाक की सलाइन रिंस मदद करती है। आप बच्चे को बताएं कि ज्यादा पानी पीने से खांसी कम होती है, यह आदत अच्छी है। सवाल: 6-12 साल के बच्चों का इलाज कैसे होगा? जवाब: 4-6 साल जैसा ही। सिंगल इंग्रीडिएंट: सूखी में डेक्स्ट्रोमेथॉर्फन, गीली में ग्वाइफेनेसिन; एम्ब्रोक्सोल या ब्रॉमहेक्सिन अगर डॉक्टर कहें। एलर्जी में नॉन-सेडेटिंग एंटीहिस्टामाइन, सलाइन रिंस। कोडीन और सेडेटिंग एंटीहिस्टामाइन दिन में न दें। डॉ. अरविंद कहते हैं कि बच्चे समझदार होते हैं, उन्हें घरेलू नुस्खे सिखाएं। आप साथ में चाय या सूप पिएं, फैमिली टाइम बनेगा। सवाल: टीनएजर्स यानी 12-18 साल में क्या करें? जवाब: वयस्कों जैसा, लेकिन कोडीन और फोलकोडीन अवॉइड; डेक्स्ट्रोमेथॉर्फन मिसयूज के बारे में बताएं। सूखी में डेक्स्ट्रोमेथॉर्फन, गीली में ग्वाइफेनेसिन; एम्ब्रोक्सोल अगर सलाह हो। एलर्जी में एंटीहिस्टामाइन, नेजल स्प्रे। डॉ. अरविंद सलाह देते हैं कि टीनएजर्स को जागरूक करें, स्मोकिंग से बचें। आप बात करके समझाएं, दवा कम इस्तेमाल करें। सवाल: वयस्कों में कफ सिरप कैसे चुनें? जवाब: डॉ. अरविंद कहते हैं कि खांसी में डेक्स्ट्रोमेथॉर्फन लेनासेफ है। डॉक्टर के कहने पर एलर्जी में एंटीहिस्टामाइन, नेजल स्टेरॉइड ले सकते हैं। कोडीन सिर्फ तभी लें, जब प्रिस्क्राइब की गई हो। डॉ. अरविंद कहते हैं कि वयस्क खुद जिम्मेदार बनें, दवा की आदत न डालें। सवाल: बुजुर्गों के लिए क्या सावधानियां जरूरी हैं? जवाब: नॉन-सेडेटिंग दवा चुनें, फर्स्ट-जेनरेशन एंटीहिस्टामाइन से गिरने का खतरा। दवा इंटरैक्शन और बीमारियां चेक करें। डॉ. अरविंद बताते हैं कि बुजुर्गों में खांसी क्रॉनिक हो सकती है, डॉक्टर से रेगुलर चेकअप। आप घर में मदद करें, अकेले न छोड़ें। सवाल: प्रेग्नेंसी और ब्रेस्टफीडिंग में क्या करें? जवाब: पहले घरेलू उपाय करें। सलाइन, हनी, गर्म लिकिविड्स ले सकते हैं। सिरप सिर्फ डॉक्टर से पूछकर लें। कोडीन और शुरुआती प्रेग्नेंसी में डीकंजेस्टेंट्स अवॉइड करें। डॉ. अरविंद कहते हैं कि मां का स्वास्थ्य बच्चे पर असर डालता है, तो सावधानी बरतें। डॉक्टर से बात करें, रिस्क कम करें। सवाल: किन बातों का ख्याल हर किसी को रखना चाहिए? जवाब: बच्चों को कोडीन, ऑपिऑइड वाले सिरप न दें। वयस्कों को सिर्फ प्रिस्क्राइब्ड सिरप दें। मल्टी-इंग्रीडिएंट सिरप न लें। डॉ. अरविंद कहते हैं कि सेल्फ-मेडिकेशन बिल्कुल न करें। सवाल: डॉक्टर को दिखाना कब जरूरी होता है? जवाब: इन सभी मामलों में डॉक्टर से कंसल्ट करना जरूरी है- तेज सांस चल रही है, सीने में दर्द हो रहा है, होंठ नीले पड़ रहे हैं, सांस लेने में घरघराहट की आवाज आ रही है, बेहोशी हो रही है, डिहाइड्रेशन हो गया है। अगर खांसी 2-3 हफ्ते से ज्यादा समय से बनी हुई है। बलगम में खून आ रहा है, वजन कम हो रहा है, रात में पसीना आ रहा है तो डॉक्टर से कंसल्ट करें। अस्थमा या हार्ट डिजीज में या रिकरेंट खांसी होने पर कंसल्ट करें। ……………… ये खबर भी पढ़िए जरूरत की खबर- खाना छुरी-कांटे से नहीं, हाथ से खाएं: आयुर्वेद में बताए गए हैं इसके 10 फायदे, साथ ही ये 9 सावधानियां भी जरूरी भोजन करना केवल पेट भरने का काम नहीं है। यह शरीर, मन और आत्मा को जोड़ने वाला अनुभव है। मिस्र, मेसोपोटामिया और ग्रीस जैसे प्राचीन सभ्यताओं में भी लोग हाथ से ही खाना खाते थे। पूरी खबर पढ़िए...