संघ के 100 साल: वंदेमातरम की धरती पर डॉ हेडगेवार का सीक्रेट कोड नेम था ‘कोकेन’

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वंदेमातरम की धरती यानी बंगाल. अविभाजित बंगाल में संघ के संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार का एक लम्बा अरसा गुजरा है. उन दिनों क्रांतिकारियों का गढ़ था बंगाल, क्रांतिकारियों के संगठन अनुशीलन समिति का मुख्यालय था कलकत्ता. ये भी अनायास नहीं है कि संघ परिवार के प्रेरणा पुरुष स्वामी विवेकानंद और जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म भी बंगाल में ही हुआ था और जिस ‘वंदेमातरम’ को क्रांतिकारियों ने अपना मूल मंत्र बनाया, और जिसे आज संघ के कार्यक्रमों में सबसे ज्यादा गाया जाता है उसकी रचना भी बंगाल की भूमि पर ही हुई थी. बंगाल से डॉक्टर हेडगेवार के कनेक्शन की शुरूआत हुई उनको स्कूल से निकाले जाने की वजह से. स्कूली जीवन में ही अंग्रेजों के खिलाफ उनके एक आंदोलन के चलते उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया. ऐसे में उन्होंने राष्ट्रीय नेताओं द्वारा स्थापित एक राष्ट्रीय स्कूल में एडमिशन ले लिया. उसी दौरान माधवराव सन्यासी नाम के क्रांतिकारी नागपुर में छुपने आए. उनको जापान निकलना था. ऐसे में मैट्रिक में पढ़ रहे युवा केशव ने, अपने वरिष्ठ अप्पाजी हाल्दे को मोहापा गांव के उनके घर में माधवराव को छुपाने के लिए राजी कर लिया. 6 महीने वो वहां छुपे रहे थे. जापान जाने से पहले माधवदास कलकत्ता को लेकर केशव के मन में काफी विश्वास जगा गए. उसी दौरान केशव व साथियों ने मिलकर अलीपुर बम कांड के लिए नागपुर से पैसा इकट्ठा करके भेजा. डॉ हेडगेवार पर लिखी अपनी किताब में बीवी देशपांडे और एसआर रामास्वामी ये भी जानकारी देते हैं कि वकील भैयासाहब बोवाड़े ने इस नेक कार्य के लिए केशव को 100 रुपए दिए थे, जिसके दस्तावेजी सुबूत भी हैं.जब पढ़ाई के लिए बंगाल गए डॉक्टर हेडगेवार ऐसे बने क्रांतिकारी फिर 1909 में खबर आई कि केशव ने मैट्रिकुलेशन की परीक्षा पास कर ली है. जो सर्टिफिकेट मिला उस पर नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशन (बंगाल) के अध्यक्ष रास बिहारी बोस के हस्ताक्षर थे. उन दिनों रास बिहारी बोस व बाघा जतिन जैसे क्रांतिकारियों से ही अंग्रेजी सरकार परेशान थी. हालांकि 1911 में राजधानी कलकत्ता से उठाकर दिल्ली ले आई गई लेकिन केशव के मन में अब तक ‘क्रांतिकारियों की काशी’ बंगाल का जादू चढ़ने लगा था.पढ़ाई के दिनों में क्रांतिकारियों को हथियार और साहित्य सप्लाई करते थे डॉक्टर हेडगेवार (Photo: AI-Generated)मैट्रिक के बाद केशव ने जिद से कलकत्ता के नेशनल मेडिकल कॉलेज में दाखिला ले लिया, जिसमें उन्हें अपने वरिष्ठ डॉ. मुंजे से प्रेरणा मिली, वित्तीय मदद डॉ दाजीसाहेब बूती से मिली. 1910 में डॉ. मुंजे का पत्र लेकर वो अनजान शहर कलकत्ता में पहुंचे, वहां उनका ठिकाना बनी शांति निकेतन लॉज. धीरे-धीरे डॉ हेडगेवार ने वहां के हॉस्टल्स में छात्रों से रिश्ते प्रगाढ़ किए और राष्ट्रवादियों से मेलजोल बढ़ाना शुरू किया. हालांकि, हर कदम पर अंग्रेजी जासूस थे. मध्य प्रांत सरकार ने तो अपना एक इंस्पेक्टर ही उनके बीच मेडिकल कॉलेज में एडमिशन करवाकर भेज दिया था. बाद में खुलासा हुआ तो वो शर्म से इस्तीफा देकर वापस चला गया. सावरकर के भाई नारायण सावरकर ने भी वहां एडमिशन लिया तो नारायण पर नजर रख रहे केतकर का भी खुलासा हुआ. केतकर का खुलासा भी डॉ हेडगेवार ने ही किया था. Advertisementउन दिनों वो नारायण को मिलने वाले विनायक सावरकर के पत्रों को पढ़-पढ़ कर उद्वेलित होते थे, काशी में तिलक के साथी भी अक्सर मांडले जेल में उनसे मिलकर आते थे, तो उन्हें जानकारी देते थे. 1906 में कलकत्ता में जो गणेशोत्सव तिलक ने शुरू किए थे, उनको भी डॉ हेडगेवार ने फिर से हॉस्टल्स में छात्रों के बीच शुरू करवाया. हालांकि, इसी बीच किसी भी तरह अनुशीलन समिति की कोर कमेटी में हेडगेवार ने अपनी जगह बना ली और उनके जिम्मे काम आया देश भर के क्रांतिकारियों के बीच क्रांति साहित्य और रिवॉल्वर्स जैसे हथियार पहुंचाना. वो छुट्टियों में नागपुर आते तो वहां के क्रांतिकारियों के लिए भी हथियार ले जाते. अनुशीलन समिति के सदस्य ज्यादातर आपस में सीक्रेट कोड में ही बात किया करते थे. हर क्रांतिकारी का एक सीक्रेट कोड नेम था, डॉ हेडगेवार का भी रखा गया— कोकेन. अब चूंकि उनके जिम्मे क्रांतिकारियों को हथियार व क्रांति साहित्य पहुंचाने का काम था, सो हर कोई उन्हें इसी नाम से जानता था. यूं क्रांति साहित्य को भी ‘बुक’  नाम से जाना जाता था, लेकिन हेडगेवार ने उस साहित्य और किताबों को नया नाम दिया ‘एनाटोमी’,  जो मेडिकल की पढ़ाई में उनका एक विषय था. मशहूर क्रांतिकारी त्रैलोक्यनाथ चक्रवर्ती ने अपनी किताब ‘जेल में 30 साल’ में अनुशीलन समिति के 30 बड़े क्रांतिकारियों का फोटो छापा है, उनमें एक डा. हेडगेवार भी हैं. Advertisementक्रांति की भावना के साथ ही डॉक्टर हेडगेवार ने रखी थी संघ की नींव (Photo: AI-Generated)यहां पढ़ें: RSS के सौ साल से जुड़ी इस विशेष सीरीज की हर कहानी क्रांतिकारी हेडगेवार ने इस वजह से खड़ा किया आरएसएस जैसा संगठन2018 में संघ की व्याख्यान माला में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने बताया कि, “राजस्थान से आंध्र तक क्रांतिकारियों को बसाना, उनकी आजीविका की व्यवस्था करना, उनको शस्त्र आदि देना, यह सारा काम एक संगठक के नाते उन्होंने किया. आगे चलकर इस आंदोलन का वह चरण असफल हो गया. शस्त्र लाने वाले जहाज भारत के किनारे पर ही पकड़े गए. अंदर के सूत्र भी पकड़े गए. फिर से सबको समेटने का काम भी डॉक्टर हेडगेवार ने ही किया.ये माना जाता है कि क्रांतिकारी गतिविधियों में और गहराई तक जाने की बजाय संगठन खड़ा करने का रास्ता उन्होंने लोकमान्य तिलक जैसे कई तत्कालीन महापुरुषों की सलाह पर किया. वो बारीकी से तिलक और सावरकर जैसे उस दौर के प्रखर अंग्रेज विरोधियों की आग थमते भी देख रहे थे, उनको लगा कि लम्बी लड़ाई के लिए धैर्य के साथ जमीन पर पहले मजबूत संगठन खड़ा करना होगा और इस काम में दशकों लगने वाले थे. इसलिए क्रांतिकारियों की तरह खुलकर लड़ने के बजाय उन्होंने गुचपुच क्रांतिकारियों की मदद करना जारी रखा. इसमें गदर क्रांतिकारी गंगा पांडेय की सहायता करना या फिर भगत सिंह के साथी, सुखदेव को छुपाना वगैरह भी शामिल था. लेकिन दूसरी तरफ उन्होंने तिलक की ही तरह कांग्रेस से खुद को जोड़ लिया, और असहयोग आंदोलन में जेल भी गए. बाद में कांग्रेस से मोहभंग हुआ तो उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नींव रखी.Advertisementपिछली कहानी: कैसे गांधी भक्त महिला ने खड़ा कर दिया राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समानांतर संगठन---- समाप्त ----