पाकिस्तान में नमाज पढ़ रहे अहमदिया मुस्लिमों पर फायरिंग:6 घायल, जवाबी कार्रवाई में हमलावर भी मारा गया

Wait 5 sec.

पाकिस्तान के एक बंदूकधारी शख्स ने शुक्रवार को नमाज पढ़ रहे लोगों पर हमला कर दिया। इसमें 6 लोग घायल हो गए। यह घटना पंजाब के रिबवाह की है। इस घटना से जुड़ा एक वीडियो भी सामने आया है। पुलिस ने इसके सही होने की पुष्टि की है। इसमें हमलावर हाथ में पिस्तौल लेकर परिसर के गेट की ओर बढ़ता है और वहां मौजूद गार्ड्स पर लगातार गोलियां चलाता है। पाकिस्तानी अखबार डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक सड़क के दूसरी ओर तैनात दो पुलिसकर्मियों ने जवाबी कार्रवाई की और हमलावर को मार गिराया। गोलीबारी से जुड़ी 5 फोटोज पुलिसकर्मियों ने हमलावर को मार गिराया वायरल वीडियो में हमलवार आते हुए दिखाई दे रहा है। मस्जिद के पास आने पर वह फायरिंग करने लगता है। शुक्रवार की नमाज चल रही थी, इसलिए अंदर मौजूद लोग घबरा गए और अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे। माहौल पूरी तरह अफरा-तफरी में बदल गया। हालांकि तब तक एक गार्ड्स अंदर घुसकर मस्जिद का दरवाजा बंद करने में कामयाब रहा। इस दौरान सड़क के दूसरी ओर तैनात पुलिसकर्मी हमलावर को निशाना बनाते हैं। वीडियो में दिखता है कि गोली लगने के बाद हमलावर की बंदूक गिर जाती है। वह उसे उठाने की कोशिश करता है। इस दौरान वह गिर जाता है और फिर जमीन पर तड़पने लगता है। पुलिस मामले की जांच में जुटी घटना के बाद पुलिस ने इलाके को घेर लिया और जांच शुरू कर दी है कि हमलावर का किसी चरमपंथी संगठन से संबंध था या नहीं। अब तक किसी संगठन ने इस हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है, हालांकि तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (TLP) जैसे कट्टरपंथी समूह पहले भी अहमदिया समुदाय के पूजा स्थलों पर हमले कर चुके हैं। अहमदिया समुदाय के प्रवक्ता आमिर महमूद ने इस हमले की कड़ी निंदा की। उन्होंने कहा कि देश में फैलाए जा रहे नफरत भरे प्रचार और भड़काऊ भाषणों ने ऐसा माहौल बना दिया है जहां इस तरह के हमलों को बढ़ावा मिलता है। उनके शब्दों में, “आज का हमला उसी नफरत भरे माहौल का नतीजा है। कुछ मौलवियों ने ऐसे फतवे जारी किए हैं जो लोगों को अहमदियों पर हमला करने के लिए उकसाते हैं। अब वक्त आ गया है कि इन नफरत भरे अभियानों को रोका जाए और दोषियों को सजा मिले, ताकि निर्दोष और शांतिप्रिय अहमदियों की जान की रक्षा हो सके।” पाकिस्तान में 20 लाख अहमदिया रहते हैं पाकिस्तान में हमेशा से अहमदिया समुदाय सरकार और कट्टरपंथियों के निशाने पर रहा है। एम्नेस्टी इंटरनेशनल की जून 2024 की रिपोर्ट के मुताबिक, पंजाब में कम से कम 36 अहमदिया लोगों को मनमाने ढंग से गिरफ्तार किया गया था, ताकि उन्हें ईद की कुर्बानी करने से रोका जा सके। पाकिस्तान में करीब 20 लाख की आबादी वाला अहमदिया समुदाय उत्पीड़न का शिकार रहा है। 1974 के संवैधानिक संशोधन के तहत उन्हें मुस्लिम नहीं माना जाता। उन्हें कुरान पढ़ने, नमाज अदा करने या खुले तौर पर धार्मिक रीति-रिवाज करने की अनुमति नहीं है। इसके अलावा, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) और तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (TLP) जैसे संगठन उन पर हमला करते हैं। अहमदिया कौन हैं? साल 1889 में पंजाब के लुधियाना जिले के कादियान गांव में मिर्जा गुलाम अहमद ने अहमदिया समुदाय की शुरुआत की थी। उन्होंने एक बैठक बुलाकर खुद को खलीफा घोषित कर दिया। उन्होंने शांति, प्रेम, न्याय और जीवन की पवित्रता जैसे शिक्षाओं पर जोर दिया। इसके बाद यह माना गया कि मिर्जा गुलाम अहमद ने इस्लाम के अंदर पुनरुत्थान की शुरुआत की है। मिर्जा गुलाम अहमद कादियान गांव से थे, ऐसे में अहमदिया को कादियानी भी कहा जाने लगा। अहमदियाओं की ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक अल्लाह ने मिर्जा गुलाम अहमद को धार्मिक युद्धों और कट्टर सोच को समाप्त करके शांति बहाल करने के लिए धरती पर भेजा था। अहमदिया समुदाय के लोगों को लिबरल माना जाता है। इसकी वजह यह है कि मिर्जा गुलाम अहमद दूसरे धर्म के संस्थापकों और संतों जैसे ईरानी प्रोफेट जोरोस्टर, अब्राहम, मूसा, जीसस, कृष्ण, बुद्ध, कन्फ्यूशियस, लाओ त्जु और गुरु नानक की शिक्षाओं को पढ़ने पर जोर देते थे। उनका मानना था कि इन शिक्षाओं के जरिए ही कोई इंसान सच्चा मुसलमान बन सकता है। 1974 से ही पाकिस्तान में अहमदिया को मुस्लिम नहीं माना जाता है साल 1974 की बात है। पाकिस्तान में दंगे भड़क गए। दंगे में अहमदिया समुदाय के करीब 27 लोगों की हत्या हो गई थी। इस घटना के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने अहमदिया मुसलमानों को ‘नॉन-मुस्लिम माइनॉरिटी' बता दिया था। उस समय इसका अहमदिया समुदाय के लोगों ने खूब विरोध किया था। हालांकि, बाद में पाकिस्तान दंड संहिता की धारा 298 के जरिए अहमदिया को मुस्लिम कहना जुर्म करार दिया गया। अगर कोई अहमदिया खुद को मुस्लिम बताता है तो उसे 3 साल तक की सजा हो सकती है। 2002 में अहमदिया लोगों के लिए पाकिस्तान सरकार ने अलग वोटर लिस्ट प्रिंट करवाई, जिसमें उन्हें गैर-मुस्लिम माना गया था। हाल ये है कि पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय के लोगों का कब्रिस्तान से लेकर मस्जिद तक अलग है। 51 साल पहले मक्का में अहमदिया को गैर-मुस्लिम बताया गया सऊदी अरब अहमदिया को मुस्लिम नहीं मानता है। 2018 में सऊदी अरब ने अहमदिया के हज करने पर पाबंदी लगा दी। अहमदिया हज के लिए जाते हैं तो उन्हें हिरासत में लेकर वापस उनके देश भेजा जाता है। आज से करीब 51 साल पहले 1974 में मक्का में इस्लामिक फिक्ह काउंसिल ने एक फतवा जारी किया था, जिसमें अहमदिया संप्रदाय और उसके अनुयायियों को काफिर और गैर-मुस्लिम करार दिया गया था। इसके बाद अलग-अलग समय पर मुस्लिम संगठनों की कई ऐसी बैठकें हुई। कई मुस्लिम देशों में वैचारिक मतभेद की वजह से अहमदिया मुस्लिमों की गिरफ्तारी तक हो जाती है। इसी वजह से कई जगहों पर इस समुदाय से जुड़े लोग अपनी पहचान तक बताने या सार्वजनिक करने से बचते हैं। सरकारी कागजों में भी ये गलत जानकारी देने लगते हैं।