एसआईआर। भ्रष्टाचार। जातिगत समीकरण। पलायन। शिक्षा : जी हां, बिहार अपनी बात कहने से कुछ ही हफ्ते दूर है। विशेषज्ञ, पर्यवेक्षक और अंधेरे में तीर चलाने वाले चुनाव विश्लेषक रणनीति और रुख का विश्लेषण कर रहे हैं। अगले कुछ हफ्तों में आपके पड़ोसी, स्नातक के दूसरे वर्ष में पढ़ रही आपकी भतीजी और आपके चाचा चुनाव विशेषज्ञ बन जाएंगे। लेकिन इन सबमें एक शब्द के बारे में होने वाली जरूरी बातचीत खो-सी गई है। वह शब्द है- बेरोजगारी। गौतम शर्मा (बदला हुआ नाम) ने हाल ही में मुझसे बातचीत की। बीस साल का यह मृदुभाषी युवक एक टैक्सी कंपनी के लिए गाड़ी चलाता है। उन्होंने मुझे बताया : मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं ऐसा काम करूंगा। मैं वेब-विश्लेषक बनना चाहता था। मैंने बी-टेक की डिग्री भी हासिल की। लेकिन कॉलेज प्लेसमेंट में सफल नहीं हो सका। मेरे दोस्त के पिता ने मुझे एक अच्छी-खासी फर्म में नौकरी दिलाने में मदद की। तनख्वाह से किराया और कुछ बुनियादी मासिक खर्चे ही निकल पाते थे। बचत की गुंजाइश नहीं थी। लेकिन अब मैं कार चलाकर लगभग 40,000 प्रति माह कमा लेता हूं- जो मेरी पहले की कमाई से ज्यादा है। आज भारत अपने सबसे बड़े संकटों में से एक का सामना कर रहा है : शिक्षितों की बेरोजगारी। 2018 में राजस्थान में भृत्य के 18 पदों के लिए 12,000 से ज्यादा लोगों ने साक्षात्कार दिया। उम्मीदवारों में इंजीनियर, वकील और चार्टर्ड अकाउंटेंट भी शामिल थे। ये हमारे देश की हकीकत है! 2024 में हरियाणा में संविदा सफाई कर्मचारी के रूप में नौकरी के लिए 46,000 से ज्यादा स्नातक और स्नातकोत्तर छात्रों ने आवेदन किया था। एक और स्याह हकीकत!एक छात्र भारत के किसी शीर्ष सरकारी कॉलेज में चार साल बिताता है, डिग्री के लिए लगभग दस लाख रु. चुकाता है, लेकिन नौकरी नहीं मिलती। 2024 में, आईआईटी से स्नातक करने वाले हर पांच में से दो छात्रों को प्लेसमेंट नहीं मिला। यह पैटर्न एनआईटी, आईआईआईटी और अन्य शीर्ष संस्थानों में भी दिखाई दे रहा है। सरकार के अपने आंकड़ों के अनुसार पिछले साल दस में से एक से ज्यादा स्नातक और स्नातकोत्तर बेरोजगार थे। महिलाओं के लिए तो स्थिति और बदतर है। हर पांच में से एक महिला स्नातक और स्नातकोत्तर के पास कोई नौकरी नहीं थी। हर साल 70 से 80 लाख युवा वर्कफोर्स में प्रवेश करते हैं। लेकिन स्नातकों और स्नातकोत्तरों के लिए उचित वेतन वाली अच्छी नौकरियां कहां हैं? हालांकि कॉर्पोरेट मुनाफा 15 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंचा गया है, फिर भी कंपनियां नौकरियों में कटौती कर रही हैं। देश की तीन प्रमुख आईटी कंपनियों के आंकड़ों से पता चलता है कि उन्होंने 2024 में लगभग 64,000 नौकरियों की छंटनी की है। चार सबसे बड़ी कंपनियों में नेट व्हाइट-कॉलर रोजगार की वृद्धि दर 2023 में पांच साल पहले की तुलना में लगभग आधी रह गई है। एक हायरिंग प्लेटफॉर्म ने हाल ही में बताया कि हर पांच में से चार इंजीनियरिंग स्नातकों और लगभग आधे बिजनेस स्कूल स्नातकों को इंटर्नशिप का प्रस्ताव ही नहीं मिलता है। प्रधानमंत्री इंटर्नशिप योजना का लक्ष्य भारत की शीर्ष 500 फर्मों में एक करोड़ इंटर्नशिप प्रदान करना था। हकीकत क्या है? आवेदन करने वालों में से 5% से भी कम को इंटर्नशिप मिल पाई। सरकार का अनुमान है कि बेरोजगारी दर लगभग 4-6% है। इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि कुल बेरोजगारों में दो-तिहाई शिक्षित युवा हैं। हाल ही में, रॉयटर्स ने दुनिया के 50 शीर्ष स्वतंत्र अर्थशास्त्रियों का सर्वेक्षण किया, जिनमें से 70% ने कहा कि भारत की बेरोजगारी दर गलत बताई जा रही है और यह वास्तविक पैमाने को तोड़-मरोड़ कर पेश करती है। पीएलएफएस द्वारा एकत्र किए गए आंकड़ों में तो प्रति सप्ताह एक घंटा भी काम करने को रोजगार माना जाता है! राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क के अनुसार, 2020 में एक इंजीनियर का औसत वार्षिक वेतन 33,000 रु. प्रति माह था। आर्थिक सर्वेक्षण 2025 से पता चला है कि वेतनभोगी पुरुषों का वास्तविक वेतन 395 रु. प्रतिदिन और महिलाओं का 295 रु. प्रतिदिन था। हाल में जारी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में 12,000 से अधिक निजी क्षेत्र के कर्मचारियों और 14,000 से अधिक बेरोजगार व्यक्तियों ने आत्महत्या की है। इस संदर्भ में नीरज घायवान की फिल्म ‘होमबाउंड’ जरूर देखें। यह उत्तर भारत के एक गांव के दो लड़कों की सच्ची कहानी पर आधारित है, जो नौकरी और सम्मान की तलाश में हैं। हर साल 70 से 80 लाख युवा वर्कफोर्स में प्रवेश करते हैं। लेकिन उचित वेतन वाली अच्छी नौकरियां कहां हैं? हालांकि कॉर्पोरेट मुनाफा 15 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंचा गया है, फिर भी कंपनियां नौकरियों में कटौती कर रही हैं।(ये लेखक के अपने विचार हैं। इस लेख के सहायक शोधकर्ता धीमंत जैन, प्रभाकर कुमार, आयुष्मान डे हैं)