ट्रम्प ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा से कहा कि ‘सभी कहते हैं कि मुझे नोबेल शांति पुरस्कार मिलना चाहिए, क्योंकि मैंने सात महीनों में सात कभी ना खत्म होने वाले युद्धों को समाप्त किया।’ यह खालिस ट्रम्प शैली का दावा था- अतिशयोक्ति से भरा, बेहिचक और लेकिन निरा झूठ! हाल का एक सर्वेक्षण बताता है कि केवल 22% अमेरिकी वयस्क मानते हैं कि ट्रम्प को नोबेल मिलना चाहिए। 76% ने कहा कि वे इसके हकदार नहीं हैं। यह दर्शाता है कि ट्रम्प ने सात युद्ध समाप्त नहीं कराए हैं। शायद एक युद्ध भी नहीं! ट्रम्प के कुछ दावे तो कोरी कल्पना हैं। मसलन, उन्होंने ईजिप्ट और इथियोपिया के बीच युद्ध खत्म कराने का श्रेय लिया। ग्रैंड इथियोपियन रेनेसां डैम को लेकर द्विपक्षीय तनाव भले वर्षों से हो, लेकिन कभी युद्ध में नहीं बदला। इसी तरह ट्रम्प ने कोसोवो और सर्बिया के बीच एक काल्पनिक युद्ध को समाप्त कराने का दावा किया। शत्रुता के इतिहास के बावजूद 1990 के दशक के बाद से दोनों देशों में कभी युद्ध नहीं हुआ। ऐसे युद्ध को खत्म कराना सबसे आसान है, जो कभी शुरू ही नहीं हुआ। आर्मेनिया और कम्बोडिया के बीच युद्ध को लेकर ट्रम्प का दावा शायद सबसे ज्यादा हास्यास्पद था। दोनों देशों के बीच करीब 6,500 किलोमीटर की दूरी है और उनके बीच कभी कोई संघर्ष हुआ ही नहीं। आर्मेनिया का इस साल पड़ोसी अजरबैजान के साथ टकराव जरूर हुआ था और ट्रम्प ने दोनों देशों को संघर्ष खत्म करने संबंधी संयुक्त घोषणा पत्र पर दस्तखत करने के लिए राजी कर लिया। लेकिन उस समझौते का अनुपालन रुक गया है। फिर भी ट्रम्प द्वारा लड़ाई को समाप्त मान लेना शांति स्थापना के प्रति उनकी अनदेखी को दर्शाता है। उन्होंने कांगो और रवांडा के बीच युद्ध को लेकर भी ‘शानदार’ अमेरिकी मध्यस्थता का दावा किया। लेकिन कागजों में युद्ध समाप्त होने के बावजूद झड़पें जारी हैं। कम्बोडिया और पड़ोसी थाइलैंड के बीच जुलाई में सीमा को लेकर झड़पें हुईं थीं। लेकिन इसे समाप्त कराने में ट्रम्प का आर्थिक दबाव ज्यादा कारगर नहीं रहा, बल्कि दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन (आसियान) की कूटनीति इसका कारण रही। आसियान अध्यक्ष और मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम ने कुआलालम्पुर में कम्बोडियाई और थाई नेताओं की बातचीत कराई। भले ही प्राचीन हिंदू मंदिरों के स्वामित्व को लेकर पनपा सीमा विवाद अनसुलझा ही रहा, लेकिन अनवर की मध्यस्थता में हुए बिना शर्त युद्धविराम ने हिंसा रोक दी। यह इकलौता उदाहरण नहीं, जब ट्रम्प ने दूसरों की विदेश नीति की समझ का श्रेय लेने की कोशिश की हो। पहलगाम हमले के बाद भारत ने पाकिस्तानी आतंकी शिविरों पर हमले किए थे। भारतीय सेनाओं की ताकत ने पाकिस्तान को पीछे हटने के लिए मजबूर किया, लेकिन ट्रम्प दुनिया को यह विश्वास दिलाना चाहते हैं कि उन्होंने अकेले ही दोनों देशों के बीच मध्यस्थता की और व्यापार संबंधी धमकियां देकर संघर्ष रोक दिया। ट्रम्प के दावे इतने हास्यास्पद थे कि भारतीय अधिकारियों ने सार्वजनिक रूप से उनका खंडन किया। ट्रम्प ने इजराइल और ईरान के बीच युद्ध खत्म कराने का भी दावा किया। लेकिन सच यह है कि उन्होंने इजराइल को ईरानी ठिकानों पर हमला करने की अनुमति दी थी। इजराइल को ईरान के हमलों से बचाने के लिए उन्होंने अपने सैन्य-उपकरणों को तैनात किया था। ईरानी परमाणु ठिकानों पर बमबारी का भी आदेश दिया। अगर यह शांति स्थापित करना है तो युद्ध भड़काना क्या होगा? नोबेल के लिए ट्रम्प के कैम्पेन का तरीका जाना-पहचाना है। पहले एक समस्या निर्मित करो, उसे सुलझाने का दावा करो और फिर पुरस्कार की मांग कर दो। उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन के साथ फोटो खिंचाने से लेकर मध्य-पूर्व के शांति समझौतों तक- ट्रम्प कूटनीति नहीं, बल्कि सुर्खियों में बने रहने का स्वांग करते रहे हैं। लेकिन नॉर्वे की नोबेल समिति सम्भवत: इस छलावे में नहीं आएगी। ट्रम्प के इस तरह के दावे ना सिर्फ अमेरिका की विश्वसनीयता कमजोर करते हैं, बल्कि इसके खतरे भी हैं। इससे वास्तविक शांति-स्थापना की कोशिशों पर बुरा असर पड़ता है। युद्ध खत्म कराना अंतरराष्ट्रीय राजनीति में सबसे कठिन कार्यों में से एक है, जिसके लिए धैर्य और सधी हुई कूटनीति आवश्यक है। लेकिन ट्रम्प को तो केवल धूम-धड़ाका चाहिए। ट्रम्प का सात युद्धों को खत्म कराने का दावा आत्म-प्रवंचना का बेहतरीन उदाहरण है। लीडरशिप का अर्थ ब्रांडिंग करना नहीं होता है। जो इस अंतर को समझते हैं, वास्तविक शांति उन नेताओं पर ही निर्भर करती है, ट्रम्प जैसे सुर्खियों में बने रहने के आदी नेता पर नहीं।(© प्रोजेक्ट सिंडिकेट)