सवाल- मैं दिल्ली से हूं। मैं और मेरे पति दोनों जॉब करते हैं। हमारा एक 12 साल का बेटा और एक 8 साल की बेटी है। दोनों पढ़ने में काफी अच्छे हैं और साथ में खूब मस्ती करते हैं। लेकिन घर के कामों में उनका बिल्कुल भी मन नहीं लगता है। दिवाली का त्योहार नजदीक है और इस बार हम चाहते हैं कि बच्चे भी घर की साफ-सफाई में हिस्सा लें। वे ये सीखें कि घर के कामों में उनका योगदान कितना जरूरी है। लेकिन दिक्कत ये है कि बच्चों को घर के काम 'टास्क' या 'पनिशमेंट' की तरह लगते हैं। उन्हें लगता है कि यह एक बोरिंग जिम्मेदारी है। इसलिए वे या तो बहाने बनाते हैं या जल्दी-जल्दी बिना मन से काम करते हैं। मैं नहीं चाहती कि घर का काम उन्हें बोझ लगे। मैं बच्चों को कैसे मोटिवेट करूं, जिससे वे खुशी-खुशी दिवाली की सफाई और तैयारियों में हिस्सा लें। कृपया मुझे गाइड करें। एक्सपर्ट: डॉ. अमिता श्रृंगी, साइकोलॉजिस्ट, फैमिली एंड चाइल्ड काउंसलर, जयपुर जवाब- आपने बहुत अच्छा सवाल पूछा है। हर पेरेंट्स का ये कंसर्न होना चाहिए कि कैसे वे अपने बच्चों में एक दायित्वबोध और जिम्मेदारी की भावना डालें। मैं अपने जवाब की शुरुआत एक कहानी से करना चाहती हूं। एक बहुत फेमस जापानी नॉवेल है, ‘तोत्तो-चान: द लिटिल गर्ल एट द विंडो।‘ इस नॉवेल की कहानी यह है कि एक स्कूल के प्रिंसिपल बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ उनसे सभी तरह के छोटे-छोटे काम कराते थे। इसमें बच्चों को खेती करना और पौधे लगाना भी सिखाया जाता था। उपन्यास की मेन कैरेक्टर ‘तोत्तो’ नाम की एक बच्ची है। उसने एक बार स्कूल में आलू के बीज लगाए, वह उसे रोज जाकर पानी डालती और उसकी देखभाल करती। ऐसे सारे बच्चों ने आलू के कुछ बीज लगाए और उसकी केयर की। कुछ दिनाें बाद जब आलू उगे तो सारे बच्चों को उनके हिस्से के आलू मिले। उस आलू की खासियत यह थी कि इसे उन्होंने खुद उगाए थे। तोत्तो उस दिन आलू लेकर बहुत खुश और एक्साइटेड होकर घर पहुंची। उसकी मम्मी ने उसी आलू की सब्जी बनाई। जब फैमिली के सभी सदस्य खाने की टेबल पर बैठे तो वह बहुत खुश थी। वह सभी को बता रही थी कि यह मेरा आलू है, इसे मैंने उगाया है। परिवार के लोग उसकी तारीफ कर रहे थे। इस कहानी से हमें ये सीख मिलती है कि जिस काम को करने में थोड़ा फन, सेंस ऑफ रिस्पांसिबिलिटी और सेंस ऑफ अचीवमेंट हो उसे करने में मजा आता है। अगर काम की उपलब्धि को आसपास के लोग सराहें और एप्रिशिएट करें तो खुशी दोगुना हो जाती है। यहां ये समझना भी जरूरी है कि बच्चों को पढ़ाने-लिखाने के साथ ही रोजमर्रा के कामों में भी शामिल करना चाहिए। इसका उनकी ग्रोथ में बड़ा प्रभाव पड़ता है। काम में खुशी महसूस करना जरूरी हम काम करेंगे या नहीं करेंगे, यह इस पर डिपेंड करता है कि उसके साथ हमारा अमाउंट ऑफ हैप्पीनेस कितना जुड़ा हुआ है। उसको करने से खुशी मिलती है कि नहीं? अगर नहीं मिलती है तो जबरदस्ती या मजबूरी में तो कर सकते हैं, लेकिन पूरे मन से नहीं। कोई भी काम हम तभी करते हैं, जब हमको उससे खुशी का एहसास होता है। इसलिए हमारी जिम्मेदारी बच्चे को यह सिखाना है कि इस काम में खुशी है। यह सिर्फ इससे नहीं होगा कि आप एक दिन दिवाली पर बच्चे को सफाई के लिए बोल दें। आपको जिम्मेदारी, सहयोग, अपने काम खुद से करना, घर के कामों में हाथ बंटाना, इन सारी चीजों को उसकी जिंदगी का हिस्सा बनाना पड़ेगा। मेरा सुझाव यह है कि इसे सिर्फ दिवाली की सफाई के संदर्भ में मत देखें। इसे एक बड़े जीवन दर्शन की तरह देखें और फिर इन चीजों को बच्चों के अंदर ढालने की कोशिश करें। उन्हें घर का कामों में मजा नहीं आता क्योंकि इससे हैप्पीनेस नहीं जुड़ी हुई है। ऐसे में घर के छोटे-छोटे कामों को खुशी और अचीवमेंट से जोड़ें। इसके लिए कुछ बातों का ध्यान रखें। आइए, अब इसे विस्तार से समझते हैं। काम को गेम या चैलेंज में बदलें बच्चे किसी भी चीज में तभी इंटरेस्ट लेते हैं, जब उसमें मजा और चैलेंज हो। इसके लिए काम को गेम की तरह पेश करें। जैसेकि- टाइम चैलेंज: उनसे कहें कि “देखते हैं, 10 मिनट में तुम कितने खिलौने अपनी जगह पर रख सकते हो!” एक टाइमर सेट करें और उनके स्कोर की तारीफ करें। स्कैवेंजर हंट: “चलो, देखते हैं कि तुम कितने पुराने पेपर या बेकार सामान ढूंढ सकते हो।” जो ज्यादा सामान ढूंढे, उसे छोटा सा इनाम दें, जैसे उनकी पसंद का स्नैक। टीमवर्क गेम: परिवार को दो टीमों में बांटें (मम्मी-बेटी वर्सेज पापा-बेटा) और देखें कि कौन पहले अपना हिस्सा साफ करता है। इस तरह बच्चों को लगेगा कि वे किसी गेम शो में हिस्सा ले रहे हैं, न कि घर के काम कर रहे हैं। उन्हें डिसीजन मेकिंग में शामिल करें बच्चे तब मोटिवेट होते हैं, जब उन्हें लगता है कि उनकी राय की वैल्यू है। उनसे पूछें कि “सोफा कहां लगाएं? परदे कौन से अच्छे लगेंगे?” कपड़ों या खिलौनों की छंटाई करते समय उनसे पूछें कि कौन-सी चीज डोनेट करनी चाहिए और कौन-सी रखनी चाहिए। इससे उन्हें लगेगा कि वे भी घर के वैल्यूएबल मेंबर हैं और उनकी पसंद मायने रखती है। काम करते-करते कहानी बनाएं आप कह सकते हैं कि “आज हम सब मिलकर क्लीनिंग सुपरहीरोज बनेंगे। हमारा मिशन कमरे को चमकाना है।” छोटे बच्चों के लिए ऐसे रोल-प्ले गेम सफाई को मजेदार बना देते हैं। बच्चों को रोल और टाइटल देना उन्हें जिम्मेदारी का अहसास कराता है। सफाई को म्यूजिक टाइम बनाएं सफाई के दौरान उनका पसंदीदा गाना चलाएं। बच्चे डांस करते-करते चीजें उठाएंगे तो उन्हें लगेगा जैसे पार्टी हो रही है। 10–15 मिनट के म्यूजिक ब्रेक सफाई को बोझिल नहीं होने देंगे। फैमिली मेंबर्स की टीम बनाएं, काम बांटें हर सदस्य को उसकी उम्र और क्षमता के हिसाब से काम सौपें। किसी को झाड़ू लगाना, किसी को खिलौने समेटना, किसी को पौधों को पानी देना। इससे हर किसी को अपनी भूमिका का अहसास होगा। हर काम के लिए तारीफ जरूर करें हर छोटे टास्क के बाद उनकी तारीफ करें। जैसेकि- “तुम्हारी मेहनत की वजह से लिविंग रूम कितना सुंदर लग रहा है।” इससे बच्चे समझते हैं कि उनके काम की कद्र है। पूरी फैमिली साथ मिलकर काम करे जब हर कोई थोड़ा-थोड़ा योगदान देता है तो काम जल्दी और आसानी से पूरा होता है। साथ काम करने से बच्चों में आपसी समझ और टीमवर्क की भावना बढ़ती है। मिशन अकम्प्लिशमेंट को सेलिब्रेट करें जब सफाई या कोई बड़ा काम पूरा हो जाए तो उसे सेलिब्रेट करें। फोटो लें या छोटी पार्टी करें। इससे मेहनत का मजा दोगुना हो जाता है। सफाई के बाद स्पेशल ट्रीट दें रिवॉर्ड हमेशा एक्साइटमेंट बढ़ाता है। काम के बाद सबको उनकी पसंद का स्नैक या मूवी टाइम दें। इससे सब अगली बार भी उत्साह से काम में जुटेंगे। कुछ चीजें बच्चों को डिमोटिवेट करती हैं। इसलिए बच्चों से घर के काम कराते समय कुछ बातों का विशेष ख्याल रखना चाहिए। घर के कामों में सभी की हिस्सेदारी जरूरी घर के कामों में सभी फैमिली मेंबर्स की बराबर की जिम्मेदारी होनी चाहिए। पेरेंट्स का काम केवल बच्चों को आदेश देना नहीं है। आपके बीच बॉस-एम्प्लॉई या घर की कामवाली का रिश्ता नहीं है कि आपने बोल दिया और उसने कर दिया। इसमें समान स्तर की हिस्सेदारी की जरूरत है। कोई भी चीज बच्चे को ऐसे करने के लिए नहीं कहनी है, जो हम खुद नहीं कर रहे हैं। आपको लगातार उनके साथ कामों में शामिल होना है। हर अच्छे काम पर अप्रिशिएट करना है, शाबाशी देनी है। अगर कपड़े धोना सिखाना है तो शुरुआत में उनके साथ आपको भी लगना पड़ेगा। हमने अक्सर देखा है कि लड़कियां मां को और लड़के पिता को फॉलो करते हैं। ऐसे में अगर आपके घर का निजाम ऐसा है कि मम्मी ही काम करेंगी तो बेटी को ही मैसेज मिलेगा कि मुझे काम करना है। लड़का नहीं इंटरेस्ट लेगा। वहीं अगर घर के सारे लोग मिलकर काम करते हैं तो बच्चों को मैसेज मिलता है कि सब लोग काम करते हैं, सबको करना चाहिए, सबकी बराबर जिम्मेदारी है। अंत में यही कहूंगी कि बच्चे माता-पिता को देखकर ही सीखते हैं। तो आप दोनों मिलकर सफाई शुरू करें, बच्चे खुद-ब-खुद इसमें शामिल होंगे और आपका साथ देंगे। ..................... पेरेंटिंग की ये खबर भी पढ़िए पेरेंटिंग- 8 साल का बेटा स्कूल नहीं जाना चाहता: कभी सिरदर्द तो कभी पेट दर्द, रोज नया बहाना, डांट-मार सब बेअसर, उसे कैसे समझाएं जब बच्चा रोज-रोज स्कूल जाने से मना करता है तो पेरेंट्स अक्सर गुस्से में आकर उसे मारते-पीटते हैं। लेकिन यह तरीका बिल्कुल भी ठीक नहीं है। बच्चे से उसके दोस्त की तरह ट्रीट करें ताकि वह बिना डर के आपसे अपनी बातें शेयर करे। पूरी खबर पढ़िए...