ऑनलाइन दुनिया में अब जरूरत है नए ऑफलाइन स्पेस बनाने की। मेंटल हेल्थ का हल हमारे आसपास ही है। किताबों में, प्रकृति में, कला में। बच्चों को रियल वर्ल्ड एक्सपीरियंस देना अब पहले से ज्यादा जरूरी है। यह कहना है देश की सबसे परोपकारी महिला रोहिणी निलेकणी का, जिन्होंने मेंटल हेल्थ को सेलिब्रेशन बना दिया है। 2024 में उन्होंने देश का पहला मेंटल हेल्थ फेस्टिवल ‘मनोत्सव’ शुरू किया। वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे पर पढ़िए, भास्कर के साथ उनकी खास बातचीत के संपादित अंश… पहला मेंटल हेल्थ फेस्टिवल मनोत्सव देश का पहला मेंटल हेल्थ फेस्टिवल है। कई लोगों के लिए ‘वेलबीइंग’ को सेलिब्रेट करना जरूरी है, इसलिए हमने इसे उत्सव बनाया। 2023 में मैंने NCBS और निमहैंस के साथ मिलकर मेंटल हेल्थ के लिए 100 करोड़ रुपए की ग्रांट 5 साल के लिए दी। कहानियां और कला के जरिए मेंटल हेल्थ को सेलिब्रेट करना जरूरी मनोत्सव फेस्टिवल शुरू करते समय हमारा उद्देश्य था कि कहानियों और कला के माध्यम से मेंटल हेल्थ से जुड़े संवाद को सरल बनाएं। कोई भी व्यक्ति मनोत्सव का हिस्सा बन सकता है। इस साल 8-9 नवंबर को बेंगलुरु में फेस्टिवल होगा। बच्चों में पढ़ने की आदत डालें बच्चे को 8 महीने की उम्र से ही पढ़ना शुरू कराएं… मां के गर्भ में रहते हुए भी। इससे शब्दों का भंडार बनता है। जब बच्चों के पास शब्द होते हैं, तो वे अपनी भावनाएं बेहतर तरीके से कह पाते हैं। कहानियां सुनना, बातचीत करना और रियल-वर्ल्ड टाइम देना जरूरी है। असली दुनिया में उनके साथ समय बिताएं, ताकि वे खुद को बेहतर समझ सकें। यह मैंने भी महसूस किया है। मैं एक बार में दो किताबें पढ़ती हूं मैं खूब पढ़ती हूं। एकसाथ एक फिक्शन और एक नॉन-फिक्शन किताब। फिक्शन मुझे कल्पना की दुनिया में ले जाता है, नॉन-फिक्शन ज्ञान बढ़ाता है। मुझे पेड़ों के बीच रहना, वॉक पर जाना पसंद है। ये सब ब्लड प्रेशर को कम करते हैं। सबसे जरूरी बात है कि दोस्त बनाएं। हार्वर्ड की रिसर्च भी कहती है कि असली दोस्ती लंबे वक्त तक मेंटल हेल्थ को मजबूत करती है। ऑफलाइन स्पेस बनाने जरूरी समाज का काम है कि हम बच्चों को ऑफलाइन, असली दुनिया का अनुभव दें। हमारा समाज पांच हजार साल पुराना है और इसमें स्ट्रेस से निपटने के अपने तरीके रहे हैं। कहानी कहने की परंपरा, कथक जैसी कलाएं, योग, महाभारत और रामायण जैसे प्रसंग… ये सब हमारे पास स्ट्रेस से निपटने के बड़े टूल्स हैं। ‘विज्ञान और समाज’ के बीच पुल कोविड के बाद मुझे लगा कि मेंटल हेल्थ एक ऐसा विषय है, जिस पर तुरंत काम करना चाहिए। बाकी सेक्टर्स में हम पहले छोटे-छोटे ग्रांट देकर सेक्टर को समझते हैं, लेकिन यहां मैंने सीधे बड़ा कदम उठाया। NIMHANS और NCBS के साथ मिलकर हमने 5 साल के लिए 100 करोड़ की ग्रांट दी। इसी का एक हिस्सा है ‘मनोत्सव’, जो विज्ञान और समाज के बीच की दूरी को खत्म करने का प्रयास है। ‘बॉडी इंटेलिजेंस’ को समझने की जरूरत हम बहुत तरह की इंटेलिजेंस की बात करते हैं...इमोशनल, सोशल, आर्टिफिशियल। लेकिन ‘बॉडी इंटेलिजेंस’ को अक्सर नजरअंदाज़ कर देते हैं। बॉडी इंटेलिजेंस का मतलब है अपने शरीर की भाषा को समझना। यानी जब शरीर थकान, दर्द, भूख, बेचैनी या सुकून के जरिए कुछ कहना चाहता है, तो उसे सुन पाना। यह वही समझ है जो बताती है कि कब हमें आराम चाहिए, कब मन बनावट से खुश है और कब शरीर सच में थक चुका है। कई बार हम दिमाग से सोचते हैं कि हम ठीक हैं, लेकिन शरीर कुछ और कह रहा होता है। यही डिस्कनेक्ट हमें स्ट्रेस, एंग्जायटी या बीमारी की ओर धकेलता है। मनोत्सव बन सकता है पब्लिक मॉडल हम मनोत्सव का मॉडल ओपन सोर्स कर रहे हैं। यानी कोई भी इसे अपने शहर में कर सकता है। हम इसकी पूरी प्रक्रिया और कंटेंट ऑनलाइन डाल रहे हैं ताकि छोटे शहरों में भी मनोत्सव जैसे फेस्टिवल शुरू हो सकें।