एन. रघुरामन का कॉलम:एक बेहतर क्रिएटर हमेशा एक अच्छे रीडर के तौर पर शुरुआत करता है

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मैं खिड़की में बैठे उस छोटे-से लड़के को कैसे भूल सकता हूं, जो एक हाथ में कॉमिक बुक कस कर पकड़े था और दूसरे हाथ से अपने बाल संवार रहा था, ताकि तेज हवा में वो बिखर ना जाएं। उसकी आंखों में गर्व था कि उसके पास खुद की कॉमिक स्टोरी बुक है, जिसे किसी के साथ बांटने की जरूरत नहीं। उन दिनों यह एक रेयर लग्जरी थी। कॉमिक के साथ ही उसकी आंखें रास्ते में गुजरते हरे-भरे खेतों, खूबसूरत मैदानों, ऊंची पहाड़ियों और बहती नदियों को देख रही थीं। जब तेज हवाएं इंजन से निकले कोयले के छोटे कणों को हर खुली खिड़की में बिखेरती तो अपनी कॉमिक से वह अपनी आंखें बंद कर लेता था। ट्रेन जब हल्के घुमाव पर मुड़ती तो वह कॉमिक को गोद में रख कर अपना चेहरा लोहे की मजबूत सलाखों के बीच रख देता, ताकि पूरी ट्रेन को एक नजर में देख सके। 8-16 साल की उम्र का वह छोटा लड़का मैं ही था, जो परिवार के साथ हर ट्रेन यात्रा का आनंद लेता था। नागपुर से अपने गृह नगर की मेरी यात्रा हमेशा भारतीय बुक स्टोर चेन ए.एच. व्हीलर एंड कंपनी प्रा.लि. में छोटी-सी खरीदी से शुरू होती थी। इसे 1877 में प्रयागराज (तत्कालीन इलाहाबाद) में फ्रेंच व्यापारी एमिल मोरौ ने सह-स्थापित किया था और प्रमुखत: यह देश के बहुत-से रेलवे स्टेशनों पर होती थी। 65 साल पुरानी यह याद रविवार को तब ताजा हो गई, जब मैंने सुना कि रेलवे बोर्ड ने अपनी कैटरिंग नीति में बदलाव किए हैं, ताकि केएफसी, मैक्डॉनल्ड, बास्किन रॉबिन्स, पिज्जा हट और हल्दीराम जैसे प्रीमियम कैटरिंग आउटलेट्स को रेलवे स्टेशनों पर संचालन की मंजूरी दी जा सके। फिलहाल भारतीय रेलवे देश भर में 1,200 से अधिक स्टेशनों का पुनर्विकास कर रही है, जिनमें ऐसे आउटलेट्स को जगह दी जाएगी। इस साल की शुरुआत में जब मैं महाकुम्भ गया तो मैंने देखा कि दशकों तक पहला बुक स्टोर रही यह दुकान अब एक मल्टीपर्पज स्टॉल में बदल गई है, जहां खाने-पीने की चीजें और पानी की बोतलें भी बिक रही थीं। मैं 15 मिनट वहां खड़ा रहा और देखा कि किताब तो एक भी नहीं बिकी, लेकिन उसका कारोबार बढ़िया चल रहा था। मैंने यह बात मुम्बई में जियो की लीड कंटेंट प्रोग्रामिंग इंचार्ज दिव्या मूरजानी से साझा की, जिन्होंने हाल ही भोपाल में अपने 18 मिनट के टेड-एक्स टॉक में अच्छी किताबें पढ़ने के महत्व पर बात की थी। उन्होंने एक बात पर जोर दिया था कि बेहतर आइडिया और रचनात्मकता तभी आती है, जब आप अच्छा कंटेंट पढ़ने-लिखने में दिमाग खपाते हो। अपना अनुभव बताते हुए उन्होंने कहा अच्छा पढ़ने से ही अच्छा लिखने की आदत बनती है। साफ-सुथरा कंटेंट आज युवा पीढ़ी के लिए जरूरी है, जो विजुअल कंटेंट में डूबी है और वह शायद ही कभी याद रह पाता है। मैं दिव्या से सहमत हूं, क्योंकि जब भी मैं अच्छा कंटेंट पढ़ता हूं तो मेरा दिमाग स्वत: ही इसे चित्रित करता है, सोचता है या कभी-कभी खुद के ही चित्रांकन बना लेता है कि ‘यह ऐसा हो सकता है।’ इससे कंटेंट लंबे समय तक याद रहता है। हवाई अड्डों पर किताबों की दुकानें देखी जा सकती हैं और धारणा यह है कि किताब खरीदना अमीरों और हवाई यात्रियों की आदत है, जो भारत में कुल यात्रियों का महज एक प्रतिशत हैं। शेष 16-18% रेलयात्रियों को लेकर माना जाता है कि वे पढ़ने के बजाय जंक फूड खाने और रील्स देखने में मग्न रहते हैं। या व्हीलर्स जैसे बुक स्टोर मालिकों ने शायद यह चलन देखा होगा, जिन्होंने अपने नॉलेज सेंटर्स को मल्टी पर्पज स्टोर में बदल दिया। फंडा यह है कि यदि आप अपने बच्चे को भविष्य में रचनात्मक व्यक्ति बनाना चाहते हैं तो, जैसा दिव्या ने सुझाया- उसे बहुत-सी अच्छे कंटेंट की किताबें पढ़ने के लिए दीजिए।