संजय कुमार का कॉलम:एनडीए की पहुंच वोटरों के अधिक व्यापक वर्ग तक थी

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महिला मतदाताओं के एक बड़े वर्ग ने सदैव ही नीतीश कुमार का समर्थन किया है, पहले उनकी शराबबंदी नीति, स्कूली लड़कियों को साइकिल और स्कूल ड्रेस देने की योजना और इस बार जीविका दीदी योजना के कारण। उन्होंने इस बार एनडीए की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जबकि महागठबंधन (एमजीबी) मतदाताओं में यह विश्वास पैदा करने में असमर्थ रहा कि अगर वह चुना गया तो बेहतर शासन दे पाएगा। एनडीए ने विभिन्न जाति-समुदायों को आकर्षित किया। एमजीबी ने भले ही अपने मौजूदा आधार को मजबूत रखा हो, पर वह अतिरिक्त मतदाताओं को आकर्षित करने में विफल रहा। एनडीए के भीतर, भाजपा ने उच्च जाति के मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा आकर्षित किया, जेडी(यू) ने कुर्मी वोट हासिल किए, उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी ने कोइरी वोट हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और हिंदुस्तान अवाम मोर्चा (हम) और लोक जनशक्ति पार्टी (आर) ने दलित वोटों का एक बड़ा हिस्सा हासिल किया। वहीं एमजीबी के गठबंधन सहयोगियों- मुख्य रूप से राजद, कांग्रेस, वीआईपी और वामपंथी दलों का कमोबेश एक ही मूल समर्थन आधार है। इन दलों के गठबंधन ने अपने मूल समर्थकों- यादव और मुसलमानों- को तो एकजुट किया, लेकिन दूसरे वर्गों के मतदाताओं को आकर्षित करने में असमर्थ रहा। बिहार में एनडीए की जीत दो महत्वपूर्ण संदेश देती है- नीतीश के नेतृत्व वाली मौजूदा एनडीए सरकार द्वारा किए गए कार्यों की समग्र स्वीकृति और चुनाव प्रचार के दौरान एनडीए द्वारा किए वादों पर मतदाताओं का पूरा भरोसा। हालांकि ये नतीजे एमजीबी के लिए बड़ा झटका हैं, फिर भी वोटों के मामले में राजद सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। पर यादवों-मुसलमानों के अलावा अन्य समुदायों को आकर्षित करने में विफल रही। प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी (जेएसपी) को 3% से थोड़े ज्यादा वोट मिले। लेकिन प्रशांत किशोर को इस बात का श्रेय दिया जाना चाहिए कि उन्होंने बिहार के बाहर के उद्योगों में मजदूरों के पलायन के बजाय स्थानीय लोगों के लिए नौकरियों/रोजगार के अवसरों के मुद्दे पर अभियान चलाया। यह संदेश बाद में अन्य दलों के अभियान में भी गूंजा। एनडीए के पक्ष में देरी से जोरदार माहौल बना था, जो उसकी बड़ी जीत में झलका। आंकड़े दिखाते हैं कि लगभग 42% मतदाता देर से निर्णय लेने वाले थे, जिन्होंने मतदान के आखिरी दिन या उसके एक-दो दिन पहले ही यह तय किया था कि उन्हें किसको वोट देना है। अपने चुनाव अभियान को स्थानीय मुद्दों के बजाय बड़े और राज्य-स्तरीय मुद्दों पर केंद्रित करने की एनडीए की रणनीति उसके लिए कारगर साबित हुई। एनडीए ने लगातार यह संदेश दिया कि बिहार के तेज विकास के लिए ‘डबल इंजन सरकार’ आवश्यक है। पोल्समैप सर्वे के मुताबिक बिहार के लगभग आधे मतदाताओं को भी लगता था कि केंद्र और राज्य, दोनों ही जगहों पर एक ही पार्टी की सरकार होनी जरूरी है। इसके विपरीत, लगभग 37% मतदाता इस विचार से सहमत नहीं थे। यह भी याद रखना होगा कि एनडीए ने मतदाताओं को समझाया ये किसी विधायक या मुख्यमंत्री को चुनने का नहीं, बल्कि बिहार को विकास के मार्ग पर तेजी से आगे ले जाने का चुनाव है। इसी विकास को सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने जोर देकर कहा कि एनडीए को वोट देना जरूरी है। मतदाताओं ने सार्वजनिक सेवाओं और बुनियादी ढांचे में सुधार को भी सराहा। तीन-चौथाई से ज्यादा उत्तरदाताओं ने कहा कि बिजली की उपलब्धता में सुधार हुआ है और लगभग हर दस में से सात का मानना ​​था कि सड़कों की स्थिति बेहतर हुई है। हर दस में से छह से ज्यादा मतदाताओं ने महसूस किया कि सरकारी स्कूलों की स्थिति सुधरी है और लगभग इतने ही मतदाताओं ने पीने के पानी की बेहतर उपलब्धता की सूचना दी। इसी तरह, आधे से थोड़े ज्यादा (54%) का मानना ​​था कि सरकारी अस्पताल बेहतर काम कर रहे हैं, जबकि लगभग आधे उत्तरदाताओं (48%) ने कानून-व्यवस्था में सुधार देखा। हर पांच में से तीन से ज्यादा मतदाताओं ने बिहार में जेडी(यू) के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को एक और मौका देने की इच्छा व्यक्त की। एनडीए ने लगातार यह संदेश दिया कि बिहार के तेज विकास के लिए ‘डबल इंजन सरकार’ आवश्यक है। बिहार के भी लगभग आधे मतदाताओं को लगता था कि केंद्र और राज्य, दोनों ही जगहों पर एक ही पार्टी की सरकार होनी जरूरी है।(ये लेखक के अपने विचार हैं)