TECH EXPLAINED: Dark AI क्या है और यह क्यों खतरनाक? जानिये इससे बचाव के तरीके

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आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) दुनिया को बदल रही है. इससे प्रोडक्टिविटी, क्रिएटिविटी और एफिशिएंसी में कई गुना सुधार हो रहा है, लेकिन इसका इस्तेमाल सिर्फ अच्छे कामों के लिए नहीं हो रहा. इस नई कटिंग-एज टेक्नोलॉजी का कई लोग दुरुपयोग भी कर रहे हैं और इससे साइबर क्राइम को अंजाम दे रहे हैं. लोगों को आर्थिक नुकसान पहुंचाने से लेकर उनके डीपफेक तैयार करने तक इस टेक्नोलॉजी का खूब दुरुपयोग भी हो रहा है. ऐसे ही मलेशियस कामों के लिए एआई के यूज को डार्क एआई कहा जा रहा है. आज हम आपके लिए डार्क एआई, इसके उदाहरण, टूल और इससे बचने के तरीकों समेत सारे सवालों के जवाब लेकर आए हैं.क्या है डार्क एआई?डार्क एआई को इविल एआई भी कहा जाता है. आसान भाषा में कहे तो साइबर अटैक, फ्रॉड, स्कैम, झूठी सूचनाओं वाले अभियान चलाने और डेटा लीक जैसे मलेशियस कामों के लिए एआई के यूज को डार्क एआई कहा जाता है. यह आमतौर पर साइबर क्रिमिनल्स, स्कैमर्स और दूसरे फ्रॉडस्टर से जुड़ी होती है. इस टेक्नोलॉजी की मदद से वो पहले की तुलना में अधिक सॉफिस्टिकेटेड अटैक लॉन्च कर पा रहे हैं. कुछ परिभाषाओ में युद्ध के दौरान एआई के यूज को भी डार्क एआई में रखा गया है. इजरायल-हमास और रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान एआई के इस्तेमाल को इसका एक उदाहरण माना जा सकता है.डार्क एआई के उदाहरणडीपफेक- ये एआई से जनरेटेड ऐसे फोटो या वीडियो होते हैं, जो बिल्कुल किसी असली आदमी जैसे लगते हैं. इसमें उनके चेहरे, हावभाव और आवाज आदि की नकल की जाती है. डीपफेक का इस्तेमाल किसी की छवि को खराब करने के लिए किया जा रहा है. गलत सूचनाएं- एआई का इस्तेमाल गलत, झूठी या भ्रामक सूचनाओं को फैलाने के लिए भी खूब किया जा रहा है. डीपफेक और भ्रामक सूचनाओं के सहारे लोगों को भ्रमित किया जाता है और उन्हें किसी गलत बात को मानने पर मजबूर कर दिया जाता है. चुनावों से लेकर युद्धों तक प्रोपेगेंडा फैलाने के लिए इसका खूब इस्तेमाल किया जा रहा है.फिशिंग- एआई की मदद से स्कैमर्स फिशिंग अटैक को अंजाम दे रहे हैं. इसमें लोगों के पास किसी जानकार व्यक्ति की आवाज वाले फर्जी मैसेज भेजे जाते हैं. इसके पीछे मालवेयर फैलाने और सेंसेटिव जानकारी चुराने से लेकर पैसे ऐंठने समेत कोई भी मंशा हो सकती है.हैकिंग- डार्क एआई का एक और बड़ा खतरा हैकिंग भी है. आजकल हैकर्स पासवर्ड क्रैक करने, डेटा माइन करने, हैकिंग को ऑटोमैट करने और सिक्योरिटी सिस्टम को हैक करने तक के काम एआई की मदद से कर रहे हैं. ये हैं डार्क एआई के खतरेडार्क एआई को लेकर इसलिए भी चिंता जताई जा रही है क्योंकि इससे मदद से साइबर अटैक्स की फ्रीक्वेंसी और असर कई गुना बढ़ गया है. यह इंसानों के साथ-साथ तकनीकी खामियों को भी निशाना बना रही हैं और इन अटैक्स को डिटेक्ट कर पाना भी मुश्किल हो गया है. इसके अलावा जिन क्षेत्रों में डिजिटल लिटरेसी कम है, वहां डीपफेक की मदद से लोगों को आसानी से झूठ के जाल में फंसाया जा सकता है. इससे चुनावों को प्रभावित करने से लेकर लोगों को चूना लगाने तक के खतरे बढ़ गए हैं. इन अटैक्स की संख्या अचानक से इतनी ज्यादा बढ़ी है कि इसे रोकने के लिए एनफोर्समेंट और कानूनी एजेंसियां खुद को अपडेट ही नहीं कर पाई हैं. अब दुनियाभर में सरकारें एआई को रेगुलेट बनाने के लिए कानून बनाने पर जोर दे रही हैं.ये हैं डार्क एआई के टूल्सचैटजीपीटी और गूगल जेमिनी जैसे टूल्स लोग अपने टास्क पूरे करने के लिए यूज कर रहे हैं. इनके सुरक्षा उपाय कड़े होते हैं, जिसके चलते इन्हें डार्क एआई में यूज नहीं किया जा सकता. साइबर क्रिमिनल्स आर्टिफिशियल नैरो इंटेलीजेंस (ANI) का यूज कर चैटबॉट बनाते हैं. इसके अलावा वो चैटजीपीटी जैसे लार्ज लैंग्वेज मॉडल (LLM) के हैक्ड या जेलब्रोकन वर्जन का भी यूज करते हैं. डार्क एआई में आमतौर पर नीचे दिए गए टूल ज्यादा इस्तेमाल होते हैं. FraudGPT- यह सबसे ज्यादा यूज होने वाली डार्क GPT है. यह डार्क वेब पर उपलब्ध है और इसमें साइबर क्रिमिनल्स के लिए ऑल-इन-वन सॉल्यूशन माना जाता है. यह मालवेयर राइट, लीक डिटेक्ट और टारेगेटेड साइट्स को मॉनिटर करने समेत कई काम कर सकती है.WormGPT- इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल मालवेयर और दूसरे मलेशियस कोड क्रिएट करने के लिए किया जाता है. यह भी डार्क वेबस पर उपलब्ध है. इसे रियल-लाइफ हैकिंग टेक्निक की नकल करने वाले डेटा पर ट्रेनिंग दी गई है, जिससे यह बहुत खतरनाक हो जाती है.PoisonGPT- इसे एक फ्रेंच कंपनी ने तैयार किया है. यह सीधे तौर पर लोगों को अटैक करने के लिए नहीं बनाई गई है. यह दूसरे एआई टूल्स में मलेशियस या मिसलीडिंग डेटा डालकर उसे इंफेक्ट करती है, जिससे असली दिखने वाले एआई मॉडल भी गलत जानकारी दे सकते हैं.डार्क एआई से खुद को कैसे बचाएं?कम्युनिकेशन में बरतें सावधानी- किसी भी अनजान या संदिग्ध व्यक्ति से आए मेल और मैसेज में आई अटैचमेंट या लिंक को ओपन न करें. मेल और मैसेज को ठीक से देखें और पूरी तरह वेरिफिकेशन के बाद ही लिंक या फाइल को ओपन करें.सोर्स पर चेक करें- आजकल एआई के कारण फेक न्यूज, वीडियो और तस्वीरों का चलन बढ़ गया है. ऐसे में अगर किसी वीडियो, न्यूज या इमेज में कोई सनसनीखेज या उकसाने वाली बात कही जा रही है तो असली सोर्स पर जाकर जरूर चेक करें.डीपफेक वीडियो से रहें सावधान- आजकल असली जैसे दिखने वाले फर्जी वीडियो की बाढ़ आई हुई है. इसलिए वीडियो को ध्यान से देखें. एआई से जनरेटेड वीडियो में व्यक्ति के हाव-भाव, शारीरिक बनावट या आवाज में थोड़ी-बहुत गड़बड़ होती है.मजबूत पासवर्ड- अपने अकाउंट और डिवाइस की सिक्योरिटी के लिए हमेशा मजबूत और यूनिक पासवर्ड का इस्तेमाल करें. इससे हैकिंग का खतरा कम हो जाता है. अपने सभी डिवाइस और सोशल मीडिया अकाउंट्स आदि के लिए सेम पासवर्ड न रखें. जहां संभव हो, वहां टू-फैक्टर ऑथेंटिकेशन को इनेबल करना न भूलें.ये भी पढ़ें-इन गलतियों से बचेंगें तो लंबी चलेगी आईफोन की बैटरी, बार-बार चार्जिंग का झंझट भी होगा खत्म