सबसे अधिक भाषाएं बोलने वाले देशों में भारत का क्रमांक चौथा है। हमारे यहां सैकड़ों भाषाएं हैं। लेकिन धर्म और अध्यात्म में भाषा का प्रयोग भारत ने अद्भुत रूप से किया है। संस्कृत का तो कोई जोड़ ही नहीं है। भाषा जन-व्यवहार के लिए बनी है। मनुष्य आपस में जितने भी व्यवहार करते हैं, उसका सशक्त माध्यम भाषा है। अध्यात्म कहता है अच्छे श्रोता और मृदु वक्ता बनें। हमारे यहां सत्य और आत्मा के लिए कोई भाषा नहीं बनी। कोई इन्हें जानना चाहे तो भाषा से नहीं पा सकता। इसके लिए मौन और विनम्रता ही लगेगी। यदि हम अच्छे श्रोता बन जाएं तो बनेंगे विनम्रता के कारण, और प्राप्त होगी आत्मा। यदि मौन साधें तो मृदु वक्ता होंगे, और मिलेगा सत्य। यह भी तय है कि जिन्हें सत्य और आत्मा की अनुभूति हुई है, उनके जीवन से शब्द चले गए। ये आचरण में ही प्रकट होते हैं। इनकी परिभाषाएं की जा सकती हैं, लेकिन अनुभूति के लिए तो भाषा भी छूट जाती है। इसलिए सामान्य रूप से अच्छे श्रोता और मृदु वक्ता बनने का प्रयास कीजिए।