1946 में आई बॉलीवुड फिल्म अनमोल घड़ी के 'आवाज दे कहां है' गाने को आवाज देने वाली नूरजहां का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है. सुरीली आवाज, अद्भुत सिंगिंग और बेमिसाल खूबसूरती के चलते वह अपने दौर की सबसे फेमस हस्तियों में गिनी जाती थीं. पंजाब से तरन्नुम की रानी तक का सफरनूरजहां का जन्म 21 सितंबर 1926 को पंजाब के कसूर जिले (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था. उनका असली नाम अल्लाह राखी वसई था, लेकिन फिल्म इंडस्ट्री में उन्हें नूरजहां के नाम से पहचान मिली. बचपन से ही संगीत की ओर झुकाव होने के कारण उन्होंने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली और छोटी उम्र में ही मंच पर गाना शुरू कर दिया. धीरे-धीरे उनकी लोकप्रियता इतनी बढ़ी कि लोग उन्हें मल्लिका-ए-तरन्नुम यानी तरन्नुम की रानी कहकर पुकारने लगे.नूरजहां भारत से पाकिस्तान तक संगीत की मिसालनूरजहां ने अपना करियर भारत में शुरू किया था और फिल्मों में अभिनय के साथ-साथ अपनी का सिंगिंग जादू भी बिखेरा. उनकी आवाज में मिठास और गहराई इतनी थी कि सुनने वाले दीवाने हो जाते थे. अनमोल घड़ी (1946), जुगनू (1947) और मिर्जा साहिबान (1947) में उनके गाने आज भी संगीत प्रेमियों की जुबान पर हैं.बंटवारे से पहले वह भारतीय सिनेमा की सबसे बड़ी स्टार्स में से एक थीं, लेकिन 1947 में देश के विभाजन के बाद उन्हें अपना बसेरा पाकिस्तान में बनाना पड़ा. वहां जाकर भी उन्होंने अपनी सिंगिंग से इतिहास रचा और पाकिस्तान की पहली महिला फिल्म डायरेक्टर भी बनीं.नूरजहां की पहचान सिर्फ सिंगर या एक्ट्रेसके रूप में ही नहीं, बल्कि एक बेहद सेल्फ डिपेंडेंट महिला के रूप में भी रही. उन्होंने दो-दो शादियां कीं और अपने बच्चों के साथ जिम्मेदारियों को निभाया. उनका पर्सनल लाइफ उतार-चढ़ाव से भरा रहा, लेकिन पेशेवर जीवन में उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. उनकी खूबसूरती और कॉन्फिडेंस ने उन्हें हर किसी की नजर में खास बना दिया.लता और नूरजहां संगीत और दोस्ती की अमर कहानीभारत की स्वर कोकिला लता मंगेशकर और नूरजहां की दोस्ती संगीत जगत की सबसे यादगार कहानियों में गिनी जाती है. लता जब फिल्मों में नया-नया गाना शुरू कर रही थीं, तब नूरजहां उनके लिए इंस्पिरेशन थीं. नूरजहां न केवल लता की सिंगिंग की तारीफ करती थीं, बल्कि उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित भी करती थीं. दिलचस्प बात यह है कि नूरजहां लता मंगेशकर को प्यार से लत्तो कहकर बुलाती थीं. दोनों की दोस्ती इतनी गहरी थी कि बंटवारे के बाद जब नूरजहां पाकिस्तान चली गईं, तब भी यह रिश्ता बरकरार रहा.लता और नूरजहां की बॉर्डर मुलाकात1951 में मशहूर कंपोजर सी. रामचंद्र, लता और नूरजहां से एक डुएट सॉन्ग रिकॉर्ड करवाना चाहते थे. इसके लिए वे लता मंगेशकर को लेकर अटारी बॉर्डर तक पहुंचे, लेकिन वीजा और पासपोर्ट की समस्या के कारण उन्हें आगे नहीं जाने दिया गया. इस दौरान नूरजहां भी बॉर्डर पर पहुंच गईं और वहां दोनों की मुलाकात हुई. सी. रामचंद्र ने अपनी बायोग्राफी में लिखा है कि जैसे ही लता और नूरजहां एक-दूसरे से मिलीं, वे फूट-फूटकर रोने लगीं.यह दृश्य बेहद इमोशनल कर देने वाला था. दोनों गायिकाएं समझ चुकी थीं कि सरहदें भले ही देशों को बांट सकती हैं, लेकिन दिलों और दोस्ती को नहीं.नूरजहां की दोस्ती सिर्फ लता मंगेशकर तक सीमित नहीं थी. वह धर्मेंद्र जैसे कलाकारों की भी अच्छी दोस्त थीं और फिल्म इंडस्ट्री के कई लोगों के साथ उनके खास रिश्ते रहे. उनके बारे में कई किस्से आज भी चर्चा का हिस्सा हैं.नूरजहां आवाज और अवार्ड्स की मिसाललंबे करियर के दौरान नूरजहां ने उर्दू, पंजाबी, सिंधी सहित कई भाषाओं में गाने गाए. उनकी सिंगिंग की ताकत यह थी कि चाहे सुर ऊंचे हों या नीचे, वे सहजता से गा लेती थीं. यही वजह थी कि उन्हें सुनने वाले आज भी उनकी आवाज में जादू महसूस करते हैं. पाकिस्तान में उन्हें प्राइड ऑफ परफॉरमेंस, तमगा-ए-इम्तियाज जैसे कई अवार्ड्स मिले. कराची में 23 दिसंबर 2000 को नूरजहां ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. उनकी अंतिम यात्रा में लाखों लोग शामिल हुए और उन्हें राजकीय सम्मान के साथ दफनाया गया. उनकी आवाज, उनकी फिल्में और उनके किस्से लोगों की यादों में आज भी जिंदा हैं.