पिछले रविवार वह कबाब खा रहा था, तभी गोलियों की आवाज सुनकर लोग इधर-उधर भागने लगे। वह अपना कबाब वहीं छोड़ कर गोलियों की दिशा में दौड़ा। ऑस्ट्रेलिया में बॉन्डी शूटिंग का हादसा डरावना था, लेकिन इसने आम लोगों की बहादुरी भी दिखा दी। इनमें एक थे पंजाबी-सिख, भारतीय मूल के न्यूजीलैंडर अमनदीप सिंह बोला। उन्होंने पुलिस की गोली लगने से एक शूटर को लड़खड़ाते देखा तो उस पर झपट पड़े। ऑस्ट्रेलिया में पर्सनल ट्रेनर बोला ने साजिद अकरम की गन लात मारकर दूर कर दी। जमीन पर दबोच कर उसे हाथों में जकड़ लिया, ताकि वह कोई दूसरा हथियार इस्तेमाल ना कर सके। 34 वर्षीय बोला महज एक राहगीर थे। वह शूटिंग वाली जगह से काफी दूर थे, फिर भी वहां गए जहां अज्ञात शूटर्स गोलियां बरसा रहे थे और जो भी कर सकते थे, किया। इस जगह से दूर, महज एक दिन पहले शनिवार को एक और 34 वर्षीय भारतीय को बचाने वाला कोई नहीं था। जबकि उन्होंने सड़क पर गाड़ी स्टार्ट करने की मशक्कत करते कई लोगों की मदद की थी। पेशे से मैकेनिक इस व्यक्ति के सीने में रात 3.30 बजे तेज दर्द हुआ। उनकी पत्नी रूपा बिना समय गंवाए उन्हें स्कूटर से नजदीक के अस्पताल लेकर पहुंचीं। उम्मीद थी कि तुरंत इलाज मिलेगा, लेकिन मदद नहीं मिली। अस्पताल से उन्हें यह कह कर लौटा दिया गया कि कोई डॉक्टर मौजूद नहीं है। पास के दूसरे अस्पताल में ईसीजी कराई तो उनका सबसे बड़ा डर सच साबित हुआ- उसके पति वेंकटरमण में हार्ट अटैक के लक्षण थे। फिर से, न कोई इमरजेंसी इलाज, न एंबुलेंस की व्यवस्था की गई। बस उन्हें तीसरे अस्पताल जाने की सलाह भर दे दी गई। घबराहट बढ़ रही थी, काेई मदद भी नहीं दिख रही थी तो उन्होंने सिर्फ वही किया- जो कर सकते थे। वे फिर से स्कूटर पर बैठे और अगले अस्पताल की ओर दौड़े। करीब 4.21 बजे वेंकटरमण ने फिर से अपना सीना पकड़ा। स्कूटर डगमगाया और दोनों सड़क पर गिर पड़े। दोनों घायल हो गए। घबराई रूपा संभलकर पति के पास दौड़ीं, जो सांस लेने के लिए भी जूझ रहे थे। फिर उस रात का शायद सबसे क्रूर पल आया। रूपा अपने हाथ हिलाती, गिड़गिड़ाती सड़क से गुजर रहे वाहनों से रुकने की भीख मांग रही थीं कि कोई रुके और उनके पति को अस्पताल पहुंचाए। लेकिन एक के बाद एक वाहन गुजरते रहे और काेई भी मदद के लिए नहीं रुका। सड़क पर पड़े वेंकटरमण एक-एक सांस के लिए जूझ रहे थे। एक-एक कीमती पल गुजर रहा था। आखिरकार एक पैदल राहगीर उनके पास रुका। जल्द ही वेंकटरमण की बहन भी मौके पर पहुंच गई और गाड़ियों को रोकने की कोशिश करने लगी। अंतत: सात मिनट बाद एक कार रुकी। तब तक वेंकटरमण बेहोश हो चुके थे। बहन ने सीपीआर देने की कोशिश की, लेकिन अस्पताल पहुंचने पर डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। सोच रहे हैं कि ऐसा निर्मम वाकिया कहां हो सकता है? तो यह सब बेंगलुरु में हुआ। हमारे देश के लोग ऑस्ट्रेलिया जैसे दूर देश में जान बचा सकते हैं, लेकिन आंखों के सामने तड़पती एक जान को नहीं बचा सके। क्या आपको यकीन नहीं कि ऐसी घटना भी हो सकती है? तो दुर्भाग्यपूर्ण है कि यह सबकुछ- रूपा की मदद की गुहार, सड़क पर गिरते उनके पति और राहगीरों की बेरुखी- पास लगे एक सीसीटीवी कैमरे में रिकॉर्ड हुई है। ट्रैफिक पुलिस ने मामला दर्ज किया और पोस्टमार्टम के बाद शव परिजनों को सौंप दिया। वेंकटरमण के पीछे उसकी मां, पत्नी और दो बच्चे रह गए हैं। यकीनन, किसी की जान बचाना मानवता के लिए सबसे बड़ा योगदान माना जाता है। यह काम कभी तत्काल दिखाई गई बहादुरी, कभी जरूरतमंद को मेडिकल केयर देने और कभी परोपकार जैसे कार्यों से होता है। फंडा यह है कि अपने आसपास की हर जिंदगी की कद्र कीजिए। इसलिए नहीं कि वे आपको आपकी जरूरत की चीजें देते हैं, बल्कि इसलिए कि वे आपको वो अहसास देते हैं, जिनकी जरूरत शायद आपको कभी महसूस नहीं होती।