शायद ही कोई दिन जाता हो, जब ऐसी खबरें ना आती हों कि एआई कैसे अर्थव्यवस्था को बदलने वाला है। भले ही इस बारे में बहुत सारे दावे बढ़ा-चढ़ाकर किए जाते हों, लेकिन हमें बदलावों के लिए तैयार तो रहना ही होगा। एआई समाज के लिए फायदेमंद हो, यह सुनिश्चित करने का सबसे भरोसेमंद तरीका है- टैक्स! तो वास्तव में एआई टैक्स कैसा होगा? इसका सबसे व्यावहारिक तरीका यह है कि एआई डेवलपमेंट के प्रमुख इनपुट्स यानी एनर्जी, चिप्स या कम्प्यूट-टाइम को टैक्स के लिए लक्षित किया जाए। अमेरिका ने कुछ खास एआई चिप्स की चीन को बिक्री पर 15% शुल्क लगाया है। इससे पता चलता है कि एआई इनपुट टैक्स कैसे कारगर हो सकता है। कुछ लोगों ने सुझाया है कि हमें एआई से हो रहे बदलावों के मद्देनजर पूंजी पर टैक्स लगाने का तरीका भी बदलना चाहिए। एआई-टैक्स का कोई भी ढांचा इस पर निर्भर करेगा कि सरकारें इससे क्या हासिल करना चाहती हैं। कोई यह भी पूछ सकता है कि हमें एआई पर टैक्स लगाना ही क्यों चाहिए? इस सवाल का जवाब हमारी टैक्स प्रणालियों और एआई कैसे अर्थव्यवस्था को बदल रहा है- इस बारे में दो बुनियादी बातें बताता है। पहली, कई देश फिलहाल श्रम बाजार में मानव श्रमिकों पर उनके संभावित एआई प्रतिस्पर्धियों की तुलना में ज्यादा टैक्स लगाते हैं। अमेरिका में लगभग 85% केंद्रीय राजस्व लोगों और उनके काम पर लगाए टैक्स से आता है। जबकि पूंजी और कॉर्पोरेट मुनाफों से काफी कम टैक्स वसूली होती है। एआई जैसी तकनीकों को रियायतों और कॉर्पोरेट टैक्स की किफायती दरों जैसी राहत मिलती है। दूसरी बात, अर्थशास्त्रियों को उम्मीद है कि एआई श्रम की तुलना में अधिक वित्तीय लाभ देगा। इसका सबसे चरम रूप वो एआई एजेंट होंगे, जो खुद डिजाइन, रेप्लिकेट और सेल्फ-मैनेजिंग में सक्षम होंगे। यानी पूंजी खुद ही श्रम की भूमिका निभाएगी। वर्तमान कर-नीतियों के तहत ऐसा बदलाव विषमता बढ़ाएगा और जीडीपी के अनुपात में सरकारी राजस्व कम करेगा। एआई टैक्स इंसानों और मशीनों, दोनों के लिए समान अवसरों वाला मैदान तैयार कर सकता है। इस साल की शुरुआत में एंथ्रोपिक के सीईओ डारियो अमोदेई ने चेतावनी दी थी कि एआई अगले पांच वर्षों में एंट्री लेवल की आधी व्हाइट कॉलर नौकरियों को समाप्त कर सकता है। इससे पांच वर्षों में बेरोजगारी 10-20% तक पहुंच सकती है। श्रम पर पूंजी से अधिक टैक्स लगाना ऑटोमेशन को बढ़ावा देता है, जिससे मानव श्रमिकों की सहायता तो कतई नहीं होती, बल्कि मशीनें उनकी जगह ले लेती हैं। कम से कम हम अपनी टैक्स प्रणाली को तो ऐसा नहीं करने दें। एक बड़ी बात यह भी है कि यदि बड़ी संख्या में नौकरियां खत्म होती हैं या नई भर्तियां धीमी होती हैं तो अभी आय और पे-रोल करों पर निर्भर सरकारों के सामने गंभीर वित्तीय संकट पैदा हो सकता है। भले ही बाद में एआई संबंधी नए रोजगार पैदा हो जाएं। सही कर-नीतियां एआई से उत्पादकता में आए उछाल के साथ मिलकर वित्तीय समस्याओं का हल कर सकती हैं। अमीर देश बुजुर्ग आबादी के लिए स्वास्थ्य सेवा और पेंशन का पैसा जुटाने की समस्या से जूझ रहे हैं। जबकि गरीब देशों के सामने कर-संबंधी आय कम होने के बावजूद बड़ी युवा आबादी को शिक्षित करने और रोजगार देने की चुनौतियां हैं। ऐसे में एआई से प्राप्त होने वाला टैक्स-राजस्व इन दोनों की समस्याओं का समाधान बन सकता है। इसके अलावा इस राजस्व को वापस एआई-संबंधी कार्यों में भी खर्च किया जा सकता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि उद्देश्य जनता के लिए उस तकनीक के लाभों को बढ़ाना है, जिस पर कर वसूला गया है। एआई टैक्स से बेरोजगारी बीमा बढ़ाया जा सकता और हटाए गए मजदूरों की री-ट्रेनिंग हो सकती है। या इससे एआई नीति का दायरा व्यापक किया जा सकता है। अभी तो नीति-निर्माता इनोवेशन को रोकना या एआई में पिछड़ना नहीं चाहेंगे। लेकिन जैसे ही जनता में जागरूकता आई, ये अरुचि समाप्त हो जाएगी। यदि एआई में जीत के मायने महज बड़े मॉडल और अमीर कंपनियां नहीं, बल्कि सेहतमंद लोग, प्रसन्न बच्चे और अधिक कुशल कार्यबल भी है, तो एआई टैक्स से यह सम्भव हो सकता है। श्रम पर पूंजी से अधिक टैक्स लगाना ऑटोमेशन को बढ़ावा देता है, जिससे मानव श्रमिकों की सहायता तो कतई नहीं होती, बल्कि मशीनें उनकी जगह ले लेती हैं। कम से कम हम अपनी टैक्स प्रणाली को तो ऐसा नहीं करने दें।(@प्रोजेक्ट सिंडिकेट)