दूसरों के घर काम करके परिवार का भरण-पोषण करने वाली कांताबाई अहिरे दिल्ली में संविधान की प्रति जलाए जाने से भावुक और गुस्सा हो गई थीं और उधार लेकर महाराष्ट्र से जयपुर पहुंचीं थीं.