पेरेंटिंग- 16 साल की बेटी बगावत कर रही:देर रात दोस्तों के साथ घूमना चाहती है, मना करूं तो नाराज होती है, मैं क्या करूं

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सवाल- मैं दिल्ली से हूं। मेरी 16 साल की बेटी में अब टीन एज वाले टैंट्रम्स दिखने लगे हैं। पिछले कुछ समय से घर में उसका मन नहीं लगता। वह अपने दोस्तों के साथ बाहर रहना चाहती है। पहले शाम तक घर लौट आती थी, लेकिन अब अक्सर दोस्तों के साथ देर रात तक बाहर रहना चाहती है। जब मैं मना करती हूं तो कहती है, ‘सबके पेरेंट्स को कोई दिक्कत नहीं है, आप ही टोकती हैं।’ जब मैंने कंट्रोल करने की कोशिश की तो दोस्त के घर पढ़ाई करने का बहाना बनाकर देर रात तक घर से बाहर रहने लगी है। शायद इस उम्र में इस तरह की इच्छाएं होना स्वाभाविक भी है, लेकिन एक पेरेंट होने के नाते मुझे हर वक्त डर लगा रहता है। टीन एज बच्चों को आजादी और जिम्मेदारी कैसे सिखाएं? उनसे कैसे बात करें कि वो हमें अपना दुश्मन न समझें और सेफ भी रहें। एक्सपर्ट: डॉ. अमिता श्रृंगी, साइकोलॉजिस्ट, फैमिली एंड चाइल्ड काउंसलर, जयपुर जवाब- मैं आपकी चिंता पूरी तरह समझ सकती हूं। आज के समय में बच्चों की सोशल लाइफ बहुत एक्टिव हो गई है। ऐसे में हर पेरेंट के मन में यह डर स्वाभाविक है कि कहीं उनकी बेटी किसी जोखिम में न पड़ जाए। लेकिन यह भी सच है कि आपकी बेटी अभी बड़ी हो रही है। 16 साल की उम्र में वह अपनी आजादी को समझना और उसे एक्सप्लोर करना चाहती है। ऐसे में आपका रोल उसे सही दिशा दिखाने का होना चाहिए। हालांकि आपका असली कंसर्न ये है कि वह सुरक्षित रहे, जो कि बिल्कुल वाजिब है। ये हम जानते हैं कि बाहर बहुत सेफ्टी नहीं है। लेकिन इस डर से हम बच्चों को घर में कैद भी नहीं कर सकते। जैसेकि सड़क पर एक्सीडेंट होते हैं, लेकिन उस डर से हम गाड़ी चलाना तो नहीं छोड़ देते। हम सावधानी से गाड़ी चलाते हैं। सड़क के नियमों का पालन करते हैं। यही बात जिंदगी पर भी लागू होती है। तो बेसिकली आपको जो करना है, वो है बेटी को सुरक्षा और सावधानी के बारे में समझाना और सिखाना। वो भी बहुत प्यार से। इसके लिए जरूरी है कि आप दोनों के बीच खुली बातचीत हो। बेटी को ये न लगे कि उसे कंट्रोल किया जा रहा है। वह आपके डर को भी समझे और अपनी बात भी कह सके। हालांकि एक पेरेंट के तौर पर सबसे पहले तो आप ये समझें कि टीनएज में बच्चे कई तरह के बदलावों से गुजरते हैं। इनमें हॉर्मोनल चेंजेस सबसे अहम है। इसकी वजह और कई सारे बदलाव होते हैं। आपने भी टीनएज में ऐसे ही बदलावों का अनुभव किया होगा। इस समय आपकी बेटी भी इसी दौर से गुजर रही है। ऐसे में उसे जरूरत कंट्रोल की नहीं, बल्कि गाइडेंस, भरोसा, कनेक्शन और ओपन कम्युनिकेशन की है। बच्ची से सेफ्टी के बारे में खुलकर करें बात अब आते हैं आपके सवाल पर। आपका डर बिल्कुल जायज है क्योंकि हर पेरेंट के मन में अपने बच्चे की सुरक्षा को लेकर चिंता होती है। लेकिन इस डर को मन में रखने के बजाय इसके बारे में बेटी से खुलकर बातचीत करें। उससे दोस्ताना तरीके से बात करें और बताएं कि वह खुद को कैसे सुरक्षित रख सकती है। उसे दोस्तों के साथ पार्टी करने या नाइट आउट से रोकने की बजाय सेफ्टी रूल्स के बारे में बताएं। बेटी को यह भी महसूस कराएं कि सेफ्टी का मतलब डरना नहीं, बल्कि स्मार्ट और जिम्मेदार होना है। इसके साथ ही उसे सेफ्टी से जुड़ी कुछ अन्य जरूरी बातें भी बताएं। बच्ची को ‘सेफ्टी’ का असली मतलब सिखाएं सेफ्टी का मतलब बच्ची को डराना नहीं है कि ‘दुनिया खतरनाक है’ या ‘कोई तुम्हें नुकसान पहुंचा सकता है।’ इसका असली मकसद बच्ची को स्मार्ट और सजग बनाना है। पेरेंट्स को इस विषय पर ऐसे बात करनी चाहिए कि वह हर स्थिति में खुद को कैसे सुरक्षित रख सकती है। उदाहरण के तौर पर, बस-ट्रेन पकड़ते समय, सड़क पार करते समय या किसी भी भीड़भाड़ वाली जगह पर खुद को कैसे सेफ रखना है, किन चीजों से सावधान रहना है और संकट की स्थिति में क्या करना चाहिए, इसके बारे में उसे बताएं। सेफ्टी पर बातचीत का उद्देश्य सेल्फ-अवेयरनेस और कॉन्फिडेंस पैदा करना होना चाहिए, ताकि वह किसी भी परिस्थिति में खुद को संभालना सीखे। कोई बाउंड्री क्रॉस करे तो क्या करना चाहिए कभी-कभी इनसिक्योरिटी सिर्फ बाहर या अनजान जगहों पर नहीं, बल्कि आसपास के माहौल में भी हो सकती है, जैसे कॉलेज में, रिश्तेदारों के घर, कोचिंग या लाइब्रेरी में। बच्ची को यह समझाना जरूरी है कि अगर वह कहीं बिल्कुल अकेली है और उसे असहज महसूस हो रहा है तो तुरंत वहां से निकल जाए या किसी भरोसेमंद व्यक्ति जैसे टीचर, सिक्योरिटी स्टाफ या दोस्त से बात करे। उसे यह भी सिखाएं कि किन परिस्थितियों में तुरंत किसी वयस्क की मदद लेनी चाहिए। जैसेकि- इन संकेतों को पहचानना और उस पर तुरंत प्रतिक्रिया देना सेफ्टी एजुकेशन का सबसे अहम हिस्सा है। बच्ची को इतना स्पेस दें कि अगर वह किसी बात से परेशान है तो बिना डरे आपसे खुलकर बात करे। बेटी के दोस्तों को बनाएं अपना दोस्त सेफ्टी का एक अहम पहलू यह भी है कि आपकी बेटी किन दोस्तों के साथ समय बिताती है और उसका फ्रेंड सर्कल कैसा है। क्या उसके दोस्त घर आते हैं और क्या बच्ची उनके बारे में आपसे खुलकर बात करती है। जब माता-पिता बच्ची के फ्रेंड सर्कल से परिचित होते हैं तो भरोसे और बातचीत की नींव मजबूत होती है। यही ओपननेस बच्ची को सिखाती है कि अपनी सीमाएं कैसे बनाए रखनी हैं और कहां सावधान रहना है। इसके अलावा कुछ और बातों का भी ख्याल रखें। जानकारी ही सुरक्षा है सेफ्टी का मतलब जानकारी और अवेयरनेस से है। आपको यह पता होना चाहिए कि आपकी बच्ची के दोस्त कौन हैं, कहां रहते हैं, उनके पेरेंट्स कौन हैं और इमरजेंसी में उनसे कैसे संपर्क किया जा सकता है। इसका अर्थ यह नहीं कि आप बच्ची को दोस्तों से मिलने से रोकें, बल्कि उसे सिखाएं कि अच्छे रिश्ते वे होते हैं, जो सम्मान, ईमानदारी और सुरक्षा पर आधारित हों। आप उसके दोस्तों को घर बुलाकर समय बिताने दें, ताकि आप उन्हें जान सकें। इस तरह आप बच्ची को सुरक्षा के साथ स्वतंत्रता देना सिखाते हैं, जहां वह नए रिश्ते भी बना सके और यह भी समझे कि कब और किससे सावधान रहना है। अंत में यही कहूंगी कि अपनी बच्ची को यह महसूस कराएं कि आप उसके साथ हैं, उसके खिलाफ नहीं। उसे यह भरोसा दें कि जब भी कोई स्थिति असुरक्षित लगे, वह सबसे पहले आपके पास आए, डरकर नहीं, भरोसे से। आपकी बातचीत का तरीका प्यारभरा और स्थिर रहेगा तो वह धीरे-धीरे सीमाओं को समझेगी और खुद भी अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी लेने लगेगी। ............................. पेरेंटिंग से जुड़ी ये खबर भी पढ़िए पेरेंटिंग– बेटी रोज कहानी सुनाने की जिद करती है: खुद को कहानियों का किरदार समझती है, क्या ये इमैजिनेशन ब्रेन के लिए हेल्दी है नेशनल स्टोरीटेलिंग नेटवर्क (NSN) यूएस के मुताबिक, कहानी सुनाना एक पुरानी और सुंदर कला है, जिसमें शब्दों और हाव-भाव के जरिए किसी कहानी के पात्रों और घटनाओं को जीवंत किया जाता है। यह न सिर्फ मनोरंजन का तरीका है, बल्कि बच्चों के साथ जुड़ने और उन्हें सिखाने का शानदार माध्यम भी है। पूरी खबर पढ़िए...