21 दिसंबर 1937 को जब वॉल्ट डिज्नी की फिल्म 'स्नो व्हाइट एंड द सेवन ड्वार्फ्स' अमेरिका में रिलीज हुई, तब शायद ही किसी ने सोचा था कि एनिमेशन के इतिहास में एक नई सदी की नींव रखी जा रही है. उस दौर में कार्टून को केवल छोटे, हास्यपूर्ण और बच्चों के मनोरंजन तक सीमित माना जाता था.शुरुआत में मूर्खता कहकर खारिज कर रहे थे दिग्गजफीचर-लेंथ एनिमेटेड फिल्म बनाना न केवल जोखिम भरा था, बल्कि हॉलीवुड के कई दिग्गज इसे "डिज्नी की मूर्खता" कहकर खारिज कर रहे थे. लेकिन डिज्नी को अपनी कल्पना और कहानी कहने की ताकत पर भरोसा था.'स्नो व्हाइट एंड द सेवन ड्वार्फ्स' जर्मन लोककथा पर आधारित थी, लेकिन इसकी प्रस्तुति ने इसे साधारण परीकथा से कहीं आगे पहुंचा दिया. भावनाओं से भरे किरदार, संगीत, रंगों का प्रयोग और तकनीकी नवाचारों ने दर्शकों को पहली बार यह एहसास कराया कि एनिमेशन भी उतना ही संवेदनशील और प्रभावशाली हो सकता है जितना लाइव-एक्शन सिनेमा. फिल्म की नायिका स्नो व्हाइट और सात बौनों के किरदार इतने जीवंत थे कि दर्शक उनसे भावनात्मक रूप से जुड़ गए.बॉक्स ऑफिस पर कई रिकॉर्ड तोड़े फिल्म नेरिलीज के साथ ही फिल्म को अभूतपूर्व सफलता मिली. इसने न केवल बॉक्स ऑफिस पर रिकॉर्ड तोड़े, बल्कि आलोचकों की सोच भी बदल दी. एनिमेशन अब सिर्फ बच्चों के लिए नहीं, बल्कि हर उम्र के दर्शकों के लिए एक गंभीर कला माध्यम के रूप में स्वीकार किया जाने लगा. यही फिल्म आगे चलकर डिज़्नी स्टूडियो के साम्राज्य की आधारशिला बनी और दुनिया भर में एनिमेटेड फिल्मों के लिए नए रास्ते खोले.आज जब पिक्सार, ड्रीमवर्क्स और आधुनिक डिजिटल एनिमेशन की बात होती है, तो उसकी जड़ें कहीं न कहीं 21 दिसंबर 1937 की उसी ऐतिहासिक शाम में मिलती हैं. स्नो व्हाइट एंड द सेवन ड्वार्फ्स केवल एक फिल्म नहीं थी, बल्कि यह वह क्षण था जब एनिमेशन ने वैश्विक सिनेमा में अपनी स्थायी और सम्मानजनक पहचान बनाई.