रिलेशनशिप एडवाइज- पार्टी–मूवी में गर्लफ्रेंड हमेशा साथ:लेकिन जरूरत या क्राइसिस में कभी नहीं, बिना ब्लेम किए ये बात कैसे कहूं

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सवाल- मैं दिल्ली में रहता हूं, 3 साल से रिलेशनशिप में हूं। मेरी गर्लफ्रेंड मुझसे बहुत प्यार करती है। हम दोनों जॉब करते हैं। हम अक्सर साथ में क्लब जाते हैं, शॉपिंग पर जाते हैं। हम साथ में मूवी भी एंजॉय करते हैं। वो मेरे हर अच्छे पल में साथ होती है, लेकिन जब भी मैं मेडिकल इमरजेंसी या पर्सनल स्ट्रगल में होता हूं, पता नहीं कैसे अपने-आप उससे बातचीत कम हो जाती है। मुझे ऐसा लगता है कि जैसे वो उन दिनों में दूरी बना लेती है। क्या ये रिश्ते में इंबैलेंस है या वो स्ट्रेस के कारण दूर चली जाती है? मैं उसे ब्लेम किए बिना कैसे बता सकता हूं कि मुझे इमोशनल सपोर्ट चाहिए? अगर उसे ये सब समझ नहीं आता है तो क्या करना चाहिए ? एक्सपर्ट: डॉ. जया सुकुल, क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट, नोएडा जवाब: सबसे अच्छी बात ये है कि आपने कोई फैसला लेने से पहले ये सवाल पूछा है। आपने बताया कि आपका तीन साल का रिश्ता है, इसमें आपने बहुत कुछ अच्छा भी देखा है, फिर भी आप अपनी फीलिंग्स को इतनी ईमानदारी से महसूस कर रहे हैं और पूछ रहे हैं- ये बहुत बड़ी बात है। ज्यादातर लोग चलता है, कहकर सालों गुजार देते हैं, और अंदर-ही-अंदर घुटते रहते हैं। इसका मतलब ये है कि आप अपने रिश्ते को और खुद को बचाना चाहते हैं। ये हिम्मत बहुत कम लोगों में होती है। आपका सवाल गलत नहीं आप जो महसूस कर रहे हैं, वो बिल्कुल गलत नहीं है। अच्छे वक्त में साथ निभाना आसान है, हंसी-मजाक, पार्टी, घूमना-फिरना होता है। असली रिश्ते की परीक्षा तब होती है जब जिंदगी मुश्किल हो जाए, जब अस्पताल के बिस्तर पर लेटे हों, जब नौकरी की टेंशन हो, जब घर में कोई दुख हो, जब रात को नींद न आए। उस वक्त अगर पार्टनर साथ नहीं होता, तो दिल में एक खालीपन सा हो जाता है। आपका ये खालीपन जायज है। क्या ये इंबैलेंस है या वो स्ट्रेस हैंडल नहीं कर पाती? इसके पीछे दोनों वजह हो सकती हैं। कुछ लोग अपने दोस्त का स्ट्रेस देखकर, उसके और करीब आ जाते हैं। उन्हें फोन करते रहते हैं, हिम्मत देते हैं, साथ बैठते हैं। वहीं, कुछ लोग स्ट्रेस देखकर घबरा जाते हैं और बचने लगते हैं। बात कम कर देते हैं, व्यस्तता का बहाना बना लेते हैं। ये जाने अनजाने दोनों में हो सकता है। आपकी गर्लफ्रेंड शायद दूसरी कैटेगरी में है। उसे शायद समझ नहीं आता कि क्या कहें, कैसे हैंडल करें। कई बार लोगों के इमोशंस को बचपन में ही दबा दिया जाता है- रो मत, चुप रहो, परेशान मत करो। बाद में बड़े होकर वही आदत बन जाती है। किसी की तकलीफ देखकर वो खुद अंदर से डर जाते हैं और दूरी बना लेते हैं। जरूरी नहीं है कि वो आपको प्यार नहीं करती है। इसका मतलब ये भी हो सकता है कि उसे इमोशनल सपोर्ट देना नहीं आता है। लेकिन एक कड़वा सच ये भी है कि कारण चाहे जो भी हो, आपकी जरूरतें भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं। अगर आप मुश्किल में अकेला महसूस करते हैं, तो रिश्ते में कहीं-न-कहीं इमोशनल बैलेंस गड़बड़ हो रहा है। उसे बिना ब्लेम किए कैसे समझाएं? किसी भी रिश्ते में, कैसी भी सिचुएशन हो। अगर किसी ने आरोप लगाए तो बात बिगड़ ही जाती है। आप अपनी फीलिंग शेयर करें। एक ऐसा दिन चुनें, जब दोनों अच्छे मूड में हों। कॉफी पीते हुए या वॉक करते हुए, बहुत आहिस्ते से ये बात शेयर करें- उसे स्पष्ट करें कि जब आप बीमार थे या जब नौकरी की बहुत टेंशन थी तो आप दोनों के बीच बातचीत बहुत कम हो गई थी। उस वक्त आपको बहुत अकेलापन लगा। उसे बताएं कि आप ये बात समझते हैं कि शायद तुम मुझे स्पेस देना चाहती थी, लेकिन मेरे लिए उस वक्त तुम्हारे साथ होने से ज्यादा ताकत महसूस होती। अगर उसे सपोर्ट करना आता ही न हो तो? यह भी हो सकता है उसकी जैसी अपब्रिंगिंग रही हो, उसमें वह कभी इमोशंस को हैंडल करना नहीं सीख पाई हो। कुछ लोग इस तरह भी सोचते हैं कि मुश्किल समय में लोगों को पर्सनल स्पेस देना चाहिए। उन्हें लगता है कि परेशान करके क्या फायदा। ऐसे में आपको अपनी बात स्पष्ट रूप से कहनी होगी। उसे बताएं कि आपको उससे कोई सलाह या समाधान नहीं चाहिए। बस इतना चाहिए कि वह उस समय आपके साथ हो। एक मैसेज, एक कॉल या बस ये कहना कि मैं तुम्हारे साथ हूं। यही काफी है। क्या कोई पुराना डर या ट्रॉमा है? कई बार लोग किसी की बीमारी या दुख देखकर इसलिए दूर हो जाते हैं, क्योंकि उसके पीछे कोई पुराना ट्रॉमा होता है। उन्हें फिर से किसी अपने को खोने का डर सताने लगता है। हो सकता है कि उन्होंने बचपन में घर में कोई गंभीर बीमारी देखी हो, जिसका डर अब तक पीछा नहीं छोड़ रहा है। अगर ऐसी कंडीशन है तो उसे काउंसलिंग दिलाएं। आपको उसका साथ देना होगा। काउंसलिंग किसी बीमारी का इलाज नहीं है, ये तो रिश्ते को बेहतर बनाने का तरीका है। अगर समझाने के बाद भी कुछ न बदले तो? ये सबसे मुश्किल लेकिन सबसे जरूरी सवाल है। अगर आपने अपनी फीलिंग साफ-साफ बता दी। बिना ब्लेम किए समझाया, काउंसलिंग का ऑफर भी दिया और फिर भी हर बार मुश्किल वक्त में वही दूरी, वही खालीपन। तो आपको एक कड़वा फैसला लेना पड़ सकता है। रिश्ता सिर्फ अच्छे दिनों का साथी नहीं, बुरे दिनों का सहारा भी होना चाहिए। अगर आप हर बार अकेले लड़ते रहेंगे और पार्टनर सिर्फ खुशियां बांटने आएगा, तो ये रिश्ता आपको अंदर से खोखला कर देगा। खुद का ख्याल कैसे रखें, अभी से इस बीच आप खुद को कमजोर न पड़ने दें। दोस्तों-फैमिली से खुलकर बात करें आखिरी बात आप गलत नहीं हैं कि आप इमोशनल सपोर्ट मांग रहे हैं। प्यार का मतलब सिर्फ डेट और पार्टी नहीं, मुश्किल वक्त में हाथ थामना भी है। आप उस इंसान के हकदार हैं जो आपके अच्छे दिनों में हंसे भी और बुरे दिनों में रोए भी। अगर वो कोशिश करे, बदलने की इच्छा दिखाए तो रिश्ते को एक मौका और दें। लेकिन अगर कोशिश ही न हो, तो खुद को अकेला रखने से बेहतर खुद को आजाद करना है। आप बहुत कीमती हैं। आपको वो प्यार मिलेगा जो हर मौसम में साथ खड़ा रहे। हिम्मत रखिए। आप अकेले नहीं हैं। ……………… ये खबर भी पढ़िए रिलेशनशिप एडवाइज- सबके सामने तारीफ, अकेले में ताने: पति करता है दोहरा व्यवहार, पर लोगों की नजर में परफेक्ट हसबैंड, मैं क्या करूं आप बिल्कुल भी अकेली नहीं हैं। ये जो बाहर तारीफ और अंदर ताने का खेल चल रहा है, इसे साइकोलॉजी में पब्लिक-प्राइवेट स्प्लिट बिहेवियर या इमोशनल डबल स्टैंडर्ड कहते हैं। ये कोई छोटी-मोटी बात नहीं है। ये इमोशनल मैनिपुलेशन की शुरुआत होती है और कई बार इमोशनल एब्यूज तक पहुंच जाती है। पूरी खबर पढ़िए...