सवाल- मेरी प्रॉब्लम ये है कि मैं इंपोस्टर सिंड्रोम से जूझ रही हूं। मैंने पहले पढ़ाई और फिर जॉब, सब जगह ठीक-ठाक अचीव किया है। फिर भी मुझे हमेशा ये लगता रहता है कि मुझे कुछ नहीं आता। हर बार कोई नया प्रोजेक्ट मिलने पर मेरे हाथ-पैर ठंडे पड़ने लगते हैं। मुझे डर लगता है कि मैं फेल हो जाऊंगी। हर दिन मीटिंग से पहले, प्रेजेंटेशन से पहले, जूम कॉल से पहले, क्लाइंट मीटिंग से पहले मेरी यही हालत होती है। हमेशा फेल हो जाने का डर सताता रहता है। मैं जानती हूं कि बाहर से सब ठीक दिखता है, लेकिन अंदर लगातार एक सेल्फ डाउट चलता रहता है। मैं इस डर से कैसे उबरूं? एक्सपर्ट– डॉ. द्रोण शर्मा, कंसल्टेंट साइकेट्रिस्ट, आयरलैंड, यूके। यूके, आयरिश और जिब्राल्टर मेडिकल काउंसिल के मेंबर। सवाल पूछने के लिए आपका बहुत शुक्रिया। आपने पहले स्कूल में पढ़ाई से लेकर अपने करियर और जॉब में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है। फिर भी आपको ये डर लगता है कि आप कुछ कम हैं। आपने अपनी मन:स्थिति को इंपोस्टर सिंड्रोम से डिफाइन किया है, जो कि ठीक है। मैं इस लेख में इंपोस्टर सिंड्रोम को डिकोड करने और उससे उबरने के कुछ सुझाव और सलाह देने की कोशिश करूंगा। इंपोस्टर सिंड्रोम क्या है? इंपोस्टर सिंड्रोम कोई क्लिनिकल कंडीशन नहीं है। ये एक साइकोलॉजिकल पैटर्न है। इस सिंड्रोम में लोग जीवन में उपलब्धियां हासिल करने के बाद भी हमेशा खुद को कमतर आंकते हैं। उन लोगों में ये प्रमुख लक्षण दिख सकते हैं- इंपोस्टर सिंड्रोम के क्लासिक संकेत इंपोस्टर सिंड्रोम वह स्थिति है, जिसमें व्यक्ति अपनी वास्तविक उपलब्धियों के बावजूद खुद को ‘अयोग्य’ या ‘फर्जी’ महसूस करता है और डरता है कि लोग किसी दिन उसकी ‘सच्चाई’ पकड़ लेंगे। 1978 में पॉलिन क्लांस और सुजैन इम्स ने इस कॉन्सेप्ट की व्याख्या की थी। शुरू-शुरू में जीवन में बड़ी उपलब्धियां हासिल करने वाली महिलाओं में यह सिंड्रोम ज्यादा देखा जाता था। लेकिन बाद में सभी जेंडर और प्रोफेशन में इस सिंड्रोम के संकेत और केसेज मिलने लगे। इस सिंड्रोम के दो सबसे प्रमुख और क्लासिक लक्षण हैं- आपकी केस स्टडी जैसाकि आपने ऊपर पढ़ा, एक क्लासिक इंपोस्टर सिंड्रोम केस की तरह आपका केस भी काबिलियत की कमी का मामला नहीं है। ट्रैक रिकॉर्ड बताता है कि आपने जीवन में बेहतर परफॉर्म किया है, लेकिन फिर भी आप खुद पर संदेह करती हैं। यानी ये सॉलिड प्रमाण होने के बावजूद सेल्फ डाउट कर मामला है। नीचे पॉइंटर्स से समझिए- यह पैटर्न इंपोस्टर सिंड्रोम के साथ-साथ परफॉर्मेंस एंग्जाइटी का क्लासिक रूप है। यहां दिक्कत “आप क्या जानती हैं” में नहीं है, बल्कि इस बात में है कि “आप अपने ज्ञान और क्षमता को कैसे आंकती हैं।” इंपोस्टर सिंड्रोम: सेल्फ एसेसमेंट टेस्ट यहां मैं आपको एक सेल्फ एसेसमेंट टेस्ट दे रहा हूं। नीचे ग्राफिक्स में कुल 12 सवाल हैं। आपको इन सवालों को ध्यान से पढ़ना है और 0 से 4 के स्केल पर इसे रेट करना है। जैसेकि पहले सवाल का आपका जवाब अगर 'बिल्कुल नहीं' है तो 0 नंबर दें और अगर आपका जवाब 'हमेशा, हर बार' है तो 4 नंबर दें। अंत में अपने टोटल स्कोर की एनालिसिस करें। नंबर के हिसाब से उसका इंटरप्रिटेशन भी ग्राफिक में दिया है। जैसेकि अगर आपका स्कोर 0 से 15 के बीच है तो इसका मतलब है कि आप मामूली सेल्फ डाउट का शिकार हैं। लेकिन अगर आपका स्कोर 48 से ज्यादा है तो यह स्ट्रॉन्ग इंपोस्टर सिंड्रोम और एंग्जाइटी का केस है। ऐसे में CBT आधारित थेरेपी मददगार हो सकती है। इंपोस्टर सिंड्रोम और एंग्जाइटी इंपोस्टर सिंड्रोम का लो सेल्फ इस्टीम और एंग्जाइटी से भी कनेक्शन है। इसे नीचे दिए पॉइंटर्स से समझिए– ये सेफ्टी बिहेवियर्स थोड़ी देर के लिए तो एंग्जाइटी को कम करते हैं, लेकिन इससे दिमाग यह सीख लेता है- “इस बार सब ठीक हो गया, परफॉर्मेंस अच्छा रहा क्योंकि मैंने एक्स्ट्रीम तैयारी की थी। दिमाग ये नहीं सोचता कि सब अच्छा इसलिए हुआ क्योंकि मैं सक्षम और काबिल हूं।” यहीं से धीरे-धीरे इंपोस्टर बिलीफ और मजबूत होता जाता है। थोड़ी एंग्जाइटी अच्छी और जरूरी एंग्जाइटी हमेशा, हर स्थिति में बुरी नहीं होती। इसे मैं आपको एक साइंटिफिक थियरी से समझाने की कोशिश करता हूं। मनोवैज्ञानिक रॉबर्ट एम. यर्केस और जॉन डिलिंगहैम डोडसन की एक थियरी है, जिसे यर्केस-डोडसन कर्व कहते हैं। ये थियरी बताती है कि एंग्जाइटी और परफॉर्मेंस के बीच रिश्ता उल्टे U (∩) की तरह होता है। चार सप्ताह का सेल्फ मैनेजमेंट प्लान यहां नीचे मैं कुछ पॉइंटर्स में आपको चार हफ्ते का एक सेल्फ हेल्प प्लान दे रहा हूं। रोज का मिनिमम प्लानिंग टाइम (15–25 मिनट) 5 मिनट: ट्रिगर+ एंग्जाइटी को रेट करना 10 मिनट: CBT आधारित वर्कशीट बनाना 5–10 मिनट: अपने बिहेवियरल स्टेप तय करना सप्ताह 1 लक्ष्य: अवेयरनेस हासिल करना, बेसलाइन बनाना रोज इन चीजों को डायरी में नोट करना है- सप्ताह 2 थॉट वर्क अपने हर विचार को रिकॉर्ड करें और उसका पॉजिटिव रिप्लाय भी लिखें। नर्वसनेस सप्ताह 3 बिहेवियरल प्रयोग तीसरे सप्ताह में आपको अपने बिहेवियर पैटर्न पर काम करना है और ये चीजें करनी है- ऐसे हर प्रयोग के बाद ये तीन बातें अपनी डायरी में नोट करें- सप्ताह 4 अपने केंद्रीय विश्वास को बदलना अभी आपको लगता है कि आप पर्याप्त नहीं हैं। इसे आपको इस थॉट के साथ रिप्लेस करना है- “मैं सक्षम हूं, अच्छी प्रोफेशनल हूं, मैं लगातार सीखती हूं।” अपने परफॉर्मेंस के लक्ष्य को बदलना है। इंप्रेस करने की जगह कॉन्ट्रीब्यूट करना है। अंतिम बात याद रखें, आप जो एंग्जाइटी महसूस करती हैं, वो आपकी दुश्मन नहीं है। वो एक बहुत कमाल का ईंधन है, जो आपकी गाड़ी को चलाता है। लेकिन मुद्दा ये है कि वह सही और संतुलित मात्रा में होना चाहिए। सही मात्रा में एंग्जाइटी हमें बेहतर बनाती है। इंपोस्टर सिंड्रोम का इलाज ये नहीं है कि हम हर तरह के डर से पूरी तरह मुक्त और आजाद हो जाएं। बल्कि इसका इलाज खुद को यह सिखाना और हर वक्त याद दिलाना है कि "एंग्जाइटी महसूस करने के बावजूद मैं सक्षम और काबिल हूं।" ……………… ये खबर भी पढ़िए मेंटल हेल्थ- मुझे आलोचना बर्दाश्त नहीं होती: कोई मेरी कमी निकाले, मेरी गलती बताए तो मैं दोस्ती तोड़ लेती हूं, खुद को कैसे बदलूं ये एक प्रेडिक्टेबल पैटर्न है, जिसका संबंध हमारे बचपन के अनुभवों से है। अगर हमारी परवरिश एक ऐसे माहौल में हुई, जहां गलती करना एक्सेप्टेबल नहीं था, मामूली सी कमी पर भी बहुत डांट पड़ती या नेगेटिव तरीके से आलोचना की जाती थी तो इसका प्रभाव हमारे एडल्ट बिहेवियर में भी दिखाई देगा। पूरी खबर पढ़िए...