हर वर्ष की तरह इस बार भी तमाम शब्दकोश उन शब्दों को ढूंढते रहे, जिनसे अंदाजा लग सके कि इस बार शब्दों का मौसम कैसा रहा। वो कौन-से शब्द रहे, जो 2025 के जाते-जाते "वर्ड ऑफ द ईयर' बन गए। शब्द किसी भी समाज की मौखिक और लिखित संस्कृति का दर्पण होते हैं। लेकिन जो शब्द तीन शब्दकोशों द्वारा "वर्ड ऑफ द ईयर' चुने गए, वो चौंकाने वाले रहे हैं और हौले से मोबाइल और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर आ टिकी हमारी दुनिया के लिए बहुत कुछ कह गए हैं। ये शब्द हैं- ‘पैरासोशल’, ‘रेजबेट’ और ‘स्लॉप’! कैम्ब्रिज डिक्शनरी ने ‘पैरासोशल’ को ‘वर्ड ऑफ द ईयर’ चुना। इसका तात्पर्य उन एकतरफा रिश्तों से है, जहां एक व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति से मजबूत इमोशनल जुड़ाव महसूस करता है; आमतौर पर किसी सेलेब्रिटी, इन्फ्लुएंसर, या काल्पनिक किरदार से, जिसे उसके अस्तित्व के बारे में पता तक नहीं होता है। लेकिन वह किरदार उस व्यक्ति के लिए सबकुछ हो जाता है। उस काल्पनिक दुनिया में वह सारी खुशी ढंूढता रहता है। हाल ही में हमने देखा भी कि फुटबॉलर लियोनल मेसी को भले ही अंग्रेजी या हिंदी न आती हो लेकिन भारत के लोगों ने अपने इस हीरो को सुना और उनका भरपूर स्वागत किया। लाखों की संख्या में टिकट खरीदे गए और एक सेल्फी के लिए भी क्या कुछ नहीं हुआ। आज का युवा इस पैरासोशल भाव में ही अपने फोन और चैटबॉट के साथ घंटों लगा रहता है। यहां तक कि घर में भी। सोशल मीडिया ने जिस वर्चुअल जुड़ाव की दुनिया खड़ी की, उसमें उस समाज की भी जगह बनी है, जहां वह व्यक्ति रहता है और एकतरफा, काल्पनिक और उस मिथिकल जुड़ाव को ही सबकुछ मानता है। फिर वही व्यक्ति सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर उन हीरोज को फॉलो करता है या एकतरफा कोई संदेश भेजता है। उसे लगता है कि प्रतिक्रिया या संदेश के उस स्पेस से वह अपने हीरो तक पहुंच चुका है। लेकिन सभी को पता है कि यह पैरासोशल भाव काल्पनिक है न कि वास्तविक। आखिर इस पैरासोशल संसार में भला कोई खुश कैसे रह सकता है? है तो यह मिथ्या ही। इसलिए पैरासोशल के संसार में किसी भी विषय पर प्रतिक्रिया देने में कोई गुरेज नहीं होता। और जब ऑनलाइन योद्धाओं को लगता है कि गुस्से से भरी प्रतिक्रियाओं पर ज्यादा ध्यान दिया जा है, तो वह उन प्रतिक्रियाओं को दोहराता जाता है। यही कारण है कि ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने अपना वर्ड ऑफ द ईयर ‘रेजबेट’ को चुना है। रेज यानी गुस्सा और बेट का तात्पर्य प्रलोभन से है। मतलब ऐसा हर सामाजिक व्यवहार- जो जानबूझकर किया जाता है और जिससे लोगों के गुस्से को उभारा जाता है। फिर क्रिया-प्रतिक्रिया का क्रम जारी रहता है और पैरासोशल संबंध को सबकुछ मानने वाला युवा उस रेजबेट में खुद को भी रंगे रहता है और दूसरे को भी। कितने हिट्स आए, लाइक और रीट्वीट हुए, बस एक ‘गार्बेज इन, गार्बेज आउट’ का क्रम चलता रहता है। और फिर जो लिखा जाता है, कहा जाता है, वह सबकुछ किसी ट्रैश या कचरे जैसा ही होता है। उस शब्द ‘स्लॉप’ की तरह जिसे मेरियम वेबस्टर ने अपना वर्ड ऑफ द ईयर चुना। यानी वह सारा डिजिटल कंटेंट जो बहुत ही सतही स्तर का है, अंतहीन रूप से बेतुका है। तो फिर क्या किया जाए? वर्ड ऑफ द ईयर तो हमें बहुत कुछ बता गए। साल भी विदा हो रहा है। तो क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम अपने सामाजिक आचरण, व्यवहार और आदतों में बदलाव या सकारात्मकता लेकर आएं? ताकि 2026 में वे शब्द वर्ड ऑफ द ईयर बनें, जो मनुष्य के समाज को बेहतर बनाने के प्रयासों के साथ जुड़ने और बनने-बनाने की कहानी बनें, जहां प्रतिक्रिया और रोष के रीट्वीट की जगह कोई खत लिखने की आदत बने, जो अपनों को या अपने अतीत और वर्तमान के वास्तविक नायकों को संबोधित हो? जिनमें कलम और कागज का सान्निध्य बना रहे, और उनसे जो लिखा जाए, जो पढ़ा जाए, वह समाज को जोड़ने वाला हो, वास्तविक हो, उसमें सबकी कहानी हो और जो कुछ अपना-सा महसूस कराए। क्यों न हमारे वर्ड ऑफ द ईयर आने वाले साल में शांति, सद्भाव, समानता और शुभकामना का पर्याय बनें। (ये लेखक के निजी विचार हैं)