नीरजा चौधरी का कॉलम:बंगाल में चुनावों के मद्देनजर उछाला है घुसपैठियों का मुद्दा?

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लोकतंत्र की सेहत के लिए जरूरी है कि अब चुनाव सुधारों पर ध्यान दिया जाए। लेकिन संसद में चुनाव सुधारों पर हुई बहस राजनीति पर ही केंद्रित रही। विपक्ष के बजाय भाजपा अपनी राजनीति को लेकर अधिक स्पष्ट नजर आई। 2026 में, खासकर पश्चिम बंगाल समेत अन्य राज्यों के चुनावों को ध्यान में रखते हुए उसने इस बहस का इस्तेमाल अपनी सियासी रणनीति की धार तेज करने के लिए किया। गृह मंत्री अमित शाह ने मतदाता सूची में मौजूद ‘घुसपैठियों’ के मुद्दे पर हमला तेज करते हुए एसआईआर के जरिए इन्हें पहचान कर देश से बाहर निकालने पर जोर दिया है। यह ऐसा मुद्दा है, जिसकी आलोचना विपक्ष कर रहा है। और भाजपा इसी मुद्दे को पश्चिम बंगाल चुनावों में जोर-शोर से उठाने जा रही है। देखें तो संसद में ‘चुनाव सुधारों’ पर हुई बहस भाजपा और विपक्ष के बीच एक तरह का समझौता थी। विपक्ष के निशाने पर रहे एसआईआर के बजाय भाजपा ‘चुनाव सुधारों’ पर चर्चा के लिए तैयार हुई, लेकिन शर्त यह थी कि विपक्ष भी पहले ‘वंदे मातरम’ पर बहस को राजी हो। इससे कई लोग उत्साहित हुए कि चलो संसद की कार्यवाही चलाने का कोई रास्ता तो निकला। भाजपा को उम्मीद है कि ‘घुसपैठियों’ को लेकर उसका रुख और बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की बिना कांट-छांट वाली कविता का मुद्दा बंगाल चुनाव में असर डालेगा। ये मुद्दे बंगाली राष्ट्रवाद को लेकर पार्टी के पक्ष में हवा बनाएंगे। भाजपा जानती है कि 2021 के चुनावों में ममता बनर्जी को इसी मुद्दे ने जीत दिलाई थी। चुनाव सुधारों पर चर्चा के दौरान भाजपा की सियासत तो स्पष्ट रही, लेकिन विपक्ष के मामले में ऐसा नहीं कहा जा सकता। हालांकि, सपा के अखिलेश यादव, आप के संजय सिंह, एनसीपी (शरद पवार) की सुप्रिया सुले और कांग्रेस के मनीष तिवारी जैसे कई विपक्षी सांसदों ने कई अहम बातें रखी जरूर थीं। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने निर्वाचन आयुक्तों को नियुक्त करने वाली समिति से सीजेआई को हटाने और 2023 में निर्वाचन आयुक्तों को किसी भी गड़बड़ी से कानूनी छूट देने के प्रावधानों पर सवाल खड़े किए थे। यह मांग भी की कि विपक्ष को कम से कम एक माह पहले ईवीएम और मतदाता सूचियां दिखाई जाएं। सीसीटीवी कैमरों का डेटा भी 45 से ज्यादा दिनों तक सुरक्षित रखा जाए। इससे यह बहस शाह बनाम राहुल बनकर रह गई। यह स्थिति भाजपा के लिए अनुकूल थी। वास्तव में भाजपा बहस को इसी दिशा में ले जाना चाहती थी। शाह ने राहुल के हथियार से उन्हीं पर हमला करते हुए नेहरू-गांधी परिवार पर ‘वोट चोरी’ का आरोप लगा दिया। शाह ने कहा कि अप्रैल 1946 में जवाहरलाल नेहरू ने ‘वोट चोरी’ की थी, जब महात्मा गांधी ने उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष बनाने के लिए चुना। यह 1947 में नेहरू के प्रधानमंत्री बनने की दिशा में एक कदम था। 15 में से 12 प्रदेश कांग्रेस कमेटियां सरदार पटेल के, जबकि दो जेबी कृपलानी के पक्ष में थीं। नेहरू के पक्ष में तो एक भी नहीं थी। शाह ने इंदिरा गांधी पर भी आरोप लगाया कि जब उन्हें चुनावी गड़बड़ियों का दोषी ठहराकर संसद सदस्यता से अयोग्य ठहराया गया था तो उन्होंने 1975 में 39वां संविधान संशोधन लाकर खुद को कानूनी कार्रवाई से बचा लिया। इसी के बाद उन्होंने देश में आपातकाल लगाया। उन्होंने एक मामले का जिक्र करते हुए सोनिया गांधी पर भी आरोप लगाया कि उन्होंने भारत का नागरिक बनने से पहले ही मतदाता सूची में नाम दर्ज करा लिया था। एसआईआर मुद्दे पर कई लोगों को उम्मीद थी कि इंडिया गठबंधन संगठित होकर सत्तापक्ष को घेरने की कोशिश करेगा। लेकिन बहस के भाजपा बनाम राहुल होने से अन्य विपक्षी नेता और पूरा इंडिया गठबंधन हाशिए पर चला गया। यह ममता बनर्जी के लिए मुश्किल पैदा करने वाली स्थिति हो सकती है। उन्हें हर हाल में बंगाल में मुस्लिम वोटों का बंटवारा रोकना है। भाजपा को उम्मीद है कि ‘घुसपैठियों’ को लेकर उसका रुख और बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की बिना कांट-छांट वाली कविता का मुद्दा बंगाल चुनाव में असर डालेगा। ये मुद्दे बंगाली राष्ट्रवाद को लेकर पार्टी के पक्ष में हवा बनाएंगे।(ये लेखिका के निजी विचार हैं)