'पांडे' कहकर न कोई डरा सकता, न उत्साहित कर सकता... क्या नई लकीर खींच रहे पीके?

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Bihar Chunav 2025 : बिहार की राजनीति में जाति हमेशा से सबसे मजबूत धुरी रही है-सत्ता की चाबी और हार-जीत का आधार भी. लेकिन जनसुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर का हालिया बयान-“मेरी जाति ना मेरी ताकत है, ना मेरी कमजोरी”-इस परंपरा को खुली चुनौती देता हुआ लग रहा है. उन्होंने साफ कहा कि वे न ‘पांडे’ जोड़ते हैं, न हटाते हैं, क्योंकि उनकी पहचान उनके काम और सोच से है, न कि जाति से. ऐसे वक्त में जब बिहार की सियासत अब भी जातीय समीकरणों पर टिकी है, पीके का यह संदेश एक नई राजनीतिक दिशा की ओर इशारा करता है. आइये इसके निहितार्थ क्या हैं?