भौतिकी, साहित्य और शांति सहित कई क्षेत्रों में दिए जाने वाले नोबेल पुरस्कारों की घोषणा सोमवार, 6 अक्टूबर से शुरू होगी और 13 अक्टूबर तक जारी रहेगी। सबसे पहले मेडिसिन के पुरस्कार की घोषणा होगी। यह पुरस्कार उन वैज्ञानिकों को दिया जाता है जिन्होंने चिकित्सा या मानव स्वास्थ्य में बड़ी खोज की हो। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस साल चिकित्सा या शरीरक्रिया विज्ञान के नोबेल पुरस्कार के लिए भूख नियंत्रित करने वाले हार्मोनों पर किए गए शोध को प्रमुख दावेदार माना जा रहा है। अवॉर्ड का ऐलान स्वीडन के कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट से दोपहर करीब 3:00 बजे होगा। विजेता को 11 मिलियन स्वीडिश क्रोना (लगभग 9 करोड़ रुपए), सोने का मेडल और सर्टिफिकेट मिलेगा। पुरस्कार 10 दिसंबर को स्टॉकहोम में दिए जाएंगे। कैसे होगा ऐलान? GLP-1 नोबेल की सबसे बड़ी दावेदार एक्सपर्ट्स का मानना है कि ऐसे समय में, जब दुनिया भर में एक अरब से अधिक लोग मोटापे से जूझ रहे हैं, ग्लूकागन-लाइक पेप्टाइड-1 (GLP-1) नामक हार्मोन पर हुई रिसर्च को विशेष सम्मान मिलने की संभावना है। इसने हार्मोन और उससे जुड़े रिसर्च ने वैश्विक स्तर पर मोटापे और मधुमेह से निपटने में बदलाव लाने वाली दवाओं (ओजेम्पिक, वेगोवी और मौनजारो) के बनने का रास्ता आसान किया है। इस खोज का सामाजिक और चिकित्सीय महत्व इतना बड़ा है कि इसे नोबेल पुरस्कार की दौड़ में सबसे आगे रखा जा रहा है। GLP-1 से जुड़े रिसर्च में कई वैज्ञानिकों का योगदान रहा है, इसलिए यह तय करना मुश्किल है कि वास्तव में कौन पुरस्कार का हकदार होगा। लेकिन कुछ नामों पर अक्सर अटकलें लगाई जाती हैं, जैसे डेनिश चिकित्सक जेन्स जुल होल्स्ट, हार्वर्ड में चिकित्सा के प्रोफेसर जोएल हैबेनर, कनाडाई एंडोक्रिनोलॉजिस्ट डैनियल ड्रकर और यूगोस्लाव में जन्मी अमेरिकी रसायनज्ञ स्वेतलाना मोजसोव। इसके अलावा भूख बढ़ाने वाले हार्मोन घ्रेलिन पर रिसर्च करने वाले जापानी रिसर्चर केंजी कांगावा और मासायासु कोजिमा को भी नोबेल पुरस्कार मिलने की संभावना बताई जा रही है। माइक्रो RNA की खोज के लिए मिला 2024 का मेडिसिन नोबेल प्राइज 2024 के मेडिसिन का नोबेल प्राइज विक्टर एम्ब्रोस और गैरी रुवकुन को मिला था। उन्हें ये प्राइज माइक्रो RNA (राइबोन्यूक्लिक एसिड) की खोज के लिए दिया गया था। माइक्रो RNA से पता चलता है कि शरीर में कोशिकाएं कैसे बनती और काम करती हैं। दोनों जीन वैज्ञानिकों ने 1993 में माइक्रो RNA की खोज की थी। इंसान का जीन DNA और RNA से बना होता है। माइक्रो RNA मूल RNA का हिस्सा होता है। ये पिछले 50 करोड़ सालों से बहु-कोशिकीय जीवों के जीनोम में विकसित हुआ है। अब तक इंसानों में अलग-अलग तरह के माइक्रो RNA के एक हजार से ज्यादा जीन की खोज हो चुकी है। 1895 में हुई थी नोबेल पुरस्कार की स्थापना नोबेल पुरस्कारों की स्थापना 1895 में हुई थी और पुरस्कार 1901 में मिला। 1901 से 2024 तक मेडिसिन की फील्ड में 229 लोगों को इससे सम्मानित किया जा चुका है। इन पुरस्कारों को वैज्ञानिक और इन्वेंटर अल्फ्रेड बर्नहार्ड नोबेल की वसीयत के आधार पर दिया जाता है। शुरुआत में केवल फिजिक्स, मेडिसिन, केमिस्ट्री, साहित्य और शांति के क्षेत्र में ही नोबेल दिया जाता था। बाद में इकोनॉमिक्स के क्षेत्र में भी नोबेल दिया जाने लगा। नोबेल प्राइज वेबसाइट के मुताबिक उनकी ओर से किसी भी फील्ड में नोबेल के लिए नॉमिनेट होने वाले लोगों के नाम अगले 50 साल तक उजागर नहीं किए जाते हैं। भारतीय मूल के हरगोविंद खुराना मेडिसिन का नोबेल मिल चुका है मेडिसिन के क्षेत्र में भारतीय मूल के अमेरिकी वैज्ञानिक हरगोविंद खुराना को नोबेल मिल चुका है । उन्हें 1968 में यह सम्मान मिला था। उन्होंने जेनेटिक कोड से जुड़ी खोज की थी, जो यह बताती है कि हमारे शरीर में प्रोटीन कैसे बनते हैं। इस खोज ने चिकित्सा की दुनिया को बदल दिया और कैंसर, दवाओं और जेनेटिक इंजीनियरिंग में मदद की। उनकी खोज ने समझाया कि डीएनए कैसे प्रोटीन बनाता है, जो शरीर के लिए जरूरी है। इसने नई दवाएं और बीमारियों के इलाज का रास्ता खोला। भारत से जुड़े 12 लोग नोबेल जीत चुके हैं, लेकिन मेडिसिन में सिर्फ खुराना को यह अवॉर्ड मिला है।