फिजिकल हेल्थ- भारत में 3.5 करोड़ लोगों को अस्थमा:ये क्यों होता है, क्या हैं शुरुआती लक्षण, डॉक्टर से जानें हर सवाल का जवाब

Wait 5 sec.

अस्थमा में इंफ्लेमेशन के कारण फेफड़ों की सांस लेने की नली प्रभावित होती है। इसके कारण सांस लेना मुश्किल हो जाता है और कई बार रोज के सामान्य कामकाज में भी मुश्किल होने लगती है। भारत में करीब 3.5 करोड़ लोग इस समस्या से प्रभावित हैं, और इसमें बच्चे से लेकर बड़े तक शामिल हैं। वैश्विक स्तर पर भारत अस्थमा के 13% मामलों का हिस्सा है, और यहां मौत की दर भी ज्यादा है। अस्थमा कोई नई बीमारी नहीं है, लेकिन इसे समझना और मैनेज करना बहुत जरूरी है। कई बार लोग इसे सामान्य सर्दी-खांसी समझकर नजरअंदाज कर देते हैं, जो गलत है। अगर समय पर ध्यान दिया जाए तो अस्थमा को कंट्रोल में रखा जा सकता है और सामान्य जीवन जिया जा सकता है। ‘फिजिकल हेल्थ’ में आज अस्थमा की बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि- अस्थमा क्या है? अस्थमा फेफड़ों की एक क्रॉनिक डिजीज है। इसमें फेफड़ों के एयरवेज में यानी सांल लेने की नलियों में सूजन आ जाती है। कुछ ट्रिगर्स की वजह से ये नलियां सिकुड़ जाती हैं, उनमें बलगम भर जाता है और सांस लेना कठिन हो जाता है। इससे व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ, खांसी या सीटी जैसी आवाज आने लगती है। अस्थमा है या नहीं, कैसे पहचानें? अस्थमा के लक्षण हर व्यक्ति में अलग-अलग हो सकते हैं। कुछ लोगों में हमेशा रहते हैं, तो कुछ में सिर्फ अटैक के समय। मुख्य लक्षण सांस की तकलीफ, सीने में जकड़न, खांसी (रात या सुबह ज्यादा) और सांस लेते समय सीटी जैसी आवाज आती है। अगर ये लक्षण बार-बार आते हैं, खासकर ठंडी हवा, व्यायाम या धूल से, तो डॉक्टर से जांच करवाएं। अस्थमा नहीं होने पर भी ये लक्षण सर्दी या अन्य समस्या से हो सकते हैं, लेकिन नजरअंदाज न करें। अस्थमा के मुख्य लक्षण ग्राफिक में देखिए- अस्थमा फ्लेयर-अप अगर आपको अस्थमा है, तो ध्यान रखें कि भले ही यह नियंत्रित हो, कभी-कभी लक्षण अचानक बढ़ सकते हैं। ऐसे फ्लेयर-अप यानी अचानक लक्षण बढ़ना। आमतौर पर जल्दी असर करने वाली दवाओं जैसे इनहेलर से कम हो जाते हैं, लेकिन गंभीर मामलों में डॉक्टर की जरूरत पड़ सकती है। अस्थमा में इमरजेंसी के लक्षण अस्थमा क्यों होता है? अस्थमा पर्यावरण और जेनेटिक फैक्टर्स के मिश्रण से होता है। इसका सटीक कारण पता नहीं है, लेकिन कुछ चीजें रिस्क बढ़ाती हैं। अगर परिवार में किसी को अस्थमा या एलर्जी है, तो बच्चे को होने की संभावना ज्यादा होती है। बचपन में बार-बार सांस की संक्रमण जैसे आरएसवी वायरस से भी यह विकसित हो सकता है। प्रदूषण, धुआं या केमिकल्स से संपर्क में रहने वाले लोगों में खतरा ज्यादा है। भारत में हवा का प्रदूषण एक बड़ा कारण है, जहां 2-3% वयस्क और 4-20% बच्चे इससे प्रभावित हैं। अस्थमा के रिस्क फैक्टर्स ग्राफिक में देखिए- किन चीजों से सतर्क रहें? अस्थमा ट्रिगर्स हर व्यक्ति के लिए अलग होते हैं, लेकिन भारत में आम ट्रिगर्स प्रदूषण, धूल, पॉलन, पालतू जानवरों की रूसी, मोल्ड, ठंडी हवा, व्यायाम, स्ट्रेस और धुआं हैं। स्मोकिंग या सेकंडहैंड स्मोक से बचें। मौसम बदलने पर, जैसे ठंड या नमी में, सतर्क रहें। अगर आप शहर में रहते हैं जहां प्रदूषण ज्यादा है, तो मास्क पहनें। ट्रिगर्स को नोटिस करने के लिए डायरी रखें- कब लक्षण आए, क्या खाया या कहां गए। पीक फ्लो मीटर से घर पर फेफड़ों की जांच करें, जो सांस की स्पीड मापता है। ट्रिगर्स की लिस्ट ग्राफिक में देखिए- अगर अस्थमा है तो क्या करें? अस्थमा का इलाज संभव नहीं है, लेकिन इसे कंट्रोल किया जा सकता है। सबसे पहले ट्रिगर्स से बचें। डॉक्टर से अस्थमा एक्शन प्लान बनवाएं, जो बताएगा कि दवाएं कब लें और इमरजेंसी में क्या करें। दवाएं मुख्य रूप से इनहेलर हैं- मेंटेनेंस इनहेलर सूजन कम करता है, रेस्क्यू इनहेलर अटैक में तुरंत राहत देता है। अगर एलर्जिक अस्थमा है तो एंटीहिस्टामाइन लें। गंभीर मामलों में बायोलॉजिकल थेरेपी या ब्रॉन्कियल थर्मोप्लास्टी। स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं- व्यायाम करें लेकिन डॉक्टर की सलाह से, धूम्रपान छोड़ें, स्वस्थ खाना खाएं और तनाव कम करें। नियमित जांच करवाएं। अस्थमा मैनेजमेंट के टिप्स ग्राफिक में देखिए- अस्थमा से जुड़े कुछ आम सवाल और जवाब सवाल: अस्थमा क्यों होता है? जवाब: अस्थमा जेनेटिक और पर्यावरणीय कारणों से होता है। अगर माता-पिता को है तो बच्चे को रिस्क ज्यादा। प्रदूषण, धुआं, एलर्जी या बचपन की संक्रमण से ट्रिगर होता है। भारत में प्रदूषण बड़ा फैक्टर है। सवाल: अस्थमा है या नहीं, कैसे पता चले? जवाब: लक्षण जैसे सांस फूलना, खांसी, व्हीजिंग अगर बार-बार आएं तो डॉक्टर से स्पाइरोमेट्री टेस्ट करवाएं। एलर्जी टेस्ट या चेस्ट एक्स-रे से कन्फर्म होता है। पीक फ्लो मीटर घर पर मदद करता है। सवाल: अगर अस्थमा है तो क्या करें? जवाब: ट्रिगर्स से बचें, दवाएं समय पर लें। एक्शन प्लान फॉलो करें। अगर सांस बहुत फूल रही हो, होंठ नीले पड़ें या बोलने में मुश्किल हो तो तुरंत अस्पताल जाएं। स्वस्थ आदतें अपनाएं जैसे व्यायाम, अच्छा खाना और नींद। सवाल: अस्थमा को रोकने के लिए क्या करें? जवाब: पूरी तरह रोकना मुश्किल है, लेकिन रिस्क कम करें। धूम्रपान न करें, प्रदूषण से बचें, वैक्सीन लें। ट्रिगर्स पहचानें और डायरी रखें। दवाएं बदलने से पहले डॉक्टर से पूछें। अगर इनहेलर पर ज्यादा निर्भर हों तो इलाज एडजस्ट करवाएं। अस्थमा के साथ जीना आसान है अगर आप सतर्क रहें। कई लोग इसे मैनेज करके सामान्य जीवन जीते हैं। बच्चे बड़े होने पर लक्षण कम हो सकते हैं। लेकिन कभी नजरअंदाज न करें, क्योंकि गंभीर अटैक जानलेवा हो सकता है। डॉक्टर से बात करें और स्वस्थ रहें। ……………… ये खबर भी पढ़िए फिजिकल हेल्थ- ये 7 संकेत हो सकते हैं रूमेटॉइड आर्थराइटिस:न करें इग्नोर, लाइफस्टाइल में बदलाव जरूरी, डॉक्टर से जानें जरूरी बातें वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) के मुताबिक, साल 2019 में दुनियाभर में लगभग 1.8 करोड़ लोग रूमेटॉइड आर्थराइटिस से पीड़ित थे। इनमें करीब 70% महिलाएं थीं और 55% मरीजों की उम्र 55 वर्ष से ज्यादा थी। पूरी खबर पढ़िए...