आरएसएस के वर्तमान प्रमुख मोहन भागवत के परिवार में संघ की विरासत बहुत पुरानी है. संघ के संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार का साथ देने से लेकर, नरेंद्र मोदी जैसे दिग्गज नेताओं को तैयार करने में भागवत परिवार का बड़ा योगदान है. संघ के 100 सालों की यात्रा को समेटती 100 कहानियों में, एक कहानी भागवत परिवार की भी है.राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को जन-जन तक पहुंचाने में कई परिवारों की पीढ़ियां खप गई हैं. वर्तमान संघ प्रमुख मोहन भागवत के परिवार की कहानी से इसे बखूबी समझा जा सकता है. उनके दादा संघ की नींव के पत्थर थे, तो पिताजी का सहयोग संघ को वटवृक्ष बनाने में बहुत ही अहम रहा. दादा श्रीनारायण पांडुरंग नाना साहेब ने जहां संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार के भागीरथ काम को आसान बनाया. वहीं पिता मधुकर राव भागवत को, लाल कृष्ण आडवाणी और नरेंद्र मोदी जैसे दिग्गज नेताओं को राजनीति और संघ का ककहरा सिखाने में अहम भूमिका निभाने का श्रेय दिया जाता है. जब नाना साहब और मधुकऱ राव जैसे दो दिग्गज घर में हों तो सोचिए बच्चों पर क्या असर होगा? मोहन भागवत के संघ के शीर्ष पर पहुंचने के पीछे घर में मिली इस प्रेरणा का योगदान समझा जा सकता है.Advertisementडॉक्टर हेडगेवार का साथ देने में आगे रहे थे मोहन भागवत के दादाश्रीनारायण पांडुरंग भागवत यानी नाना साहेब का जन्म महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले (तब मध्य प्रांत) के वीरमाल गांव में 1884 में हुआ था. घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, सो वह अपने मामाजी के यहां नागपुर जिले के कस्बे काटोल में आ गए. महाभारत के अश्वमेघ सर्ग में इस नगर का जिक्र कुंतलपुर के नाम से है. नाना साहब ने प्रयागराज (तब इलाहाबाद) से कानून में डिग्री ली और फिर चंद्रपुर जिले की ही वरोरा नगरपालिका में कुछ कारोबार करने लगे. डॉक्टर हेडगेवार का काम आगे बढ़ाने में मोहन भागवत के दादा ने निभाई थी बड़ी भूमिका (Photo: AI-Generated)वरोरा तब कोयला खदानों के लिए प्रसिद्ध था. नाना साहब ने साथ में चंद्रपुर जिला न्यायालय में वकालत भी शुरू कर दी. वरोरा उन दिनों कांग्रेस की गतिविधियों का केन्द्र था, नाना साहब भी कांग्रेस से जुड़ गए. 1930 में पूरा परिवार चंद्रपुर ही रहने लगा. जहां उनकी मित्रता लोकमान्य तिलक के करीबी बलवंत राव देशमुख से हो हुई.देश, समाज, संस्कृति के प्रति जो तिलक की सोच थी, वो उनके भी मन में घर करने लगी थी. धीरे-धीरे नाना साहब की गिनती चंद्रपुर के नामी वकीलों में होने लगी. डॉ. हेडगेवार ने जब संघ की शाखा चंद्रपुर में शुरू की तो नाना साहब ने उनके विचारों से प्रभावित होकर उनका नेतृत्व स्वीकार करने में कोई गुरेज नहीं किया, जबकि डॉ. हेडगेवार उनसे पांच साल छोटे थे.Advertisementये अलग बात है कि नाना साहब का गुस्सा उन दिनों मशहूर था, वो केस लेकर आने वालों को साफ बता देते थे कि आपके मुकदमे में कोई दम नहीं है, बावजूद इसके लोग पीछे नहीं हटते थे कि कोई और वकील कर लें, कह देते थे कि भाग्य में जो होगा देखा जाएगा लेकिन मुकदमा आप ही लड़ोगे. ये भी खासा दिलचस्प है कि नाना साहब पर मुसलमानों और ईसाइयों को भी खूब विश्वास था, उनके ज्यादातर मुकदमे नाना साहब के पास ही आते थे. ये वो दौर था, जब संघ के पास ना कार्यालय होता था और ना अपने आप शाखा में आने वाले ज्यादा कार्यकर्ता. तब नाना साहब चंद्रपुर में खेवनहार बने... उन्होंने ना केवल अपना घर संघ कार्यकर्ताओं की बैठकों, उनके रात्रि प्रवास, भोजन आदि के लिए सालों तक उपलब्ध करवाया, बल्कि जिन्हें स्वभाव से जल्दी गुस्सा होने वाला माना जाता था, शाखा में बच्चों से सबसे ज्यादा प्यार से वही बात करते थे. बच्चों के प्रति उनका सरल स्वभाव ही एक बड़ी वजह बन गया था कि ढेर सारे संघ प्रचारक इस शहर की शाखा से निकले थे. असर उनके परिवार पर भी पड़ा, उनके एक पुत्र मधुकर राव भागवत प्रचारक बनकर संघ के प्रसार के लिए घर छोड़कर चले गए.Advertisementयहां पढ़ें: RSS के सौ साल से जुड़ी इस विशेष सीरीज की हर कहानीप्रधानमंत्री मोदी की लाइफ पर गहरा है मोहन भागवत के पिता का असर मधुकर को गुजरात में प्रचारक बनाकर भेजा गया, और आज गुजरात में संघ को खड़ा करने का श्रेय मधुकर राव को ही जाता है. वह अक्सर गुजराती गांधी शैली की धोती और विदर्भ में प्रचलित ऊपरी परिधान एक साथ पहनते थे. लाल कृष्ण आडवाणी और नरेंद्र मोदी दोनों की जिंदगी पर उनका गहरा असर रहा है. मोदी ने तो अपनी किताब ‘ज्योतिपुंज’ में विस्तार से उनके बारे में लिखा है कि कैसे वो 20 साल की उम्र में पहली बार मधुकर राव से मिले थे और नागपुर में संघ प्रशिक्षण का तृतीय वर्ष करते वक्त महीने भर एक ही साथ रहे थे.लाल कृष्ण आडवाणी, नरेंद्र मोदी के जीवन पर रहा मोहन भागवत के पिता का गहरा असर (Photo: AI-Generated) पीएम मोदी ने विस्तार से लिखा है कि कैसे, मधुकर राव 1941 में प्रचारक बनने के बाद एकनाथ रानाडे के साथ महाकौशल-कटनी क्षेत्र के व्यापक दौरे पर गए, फिर अनुभव लेकर गुजरात आए. शुरुआत में उन्होंने सूरत के पारेख टेक्नीकल इंस्टीट्यूट और अहमदाबाद में शाखा शुरू की. आप मोहन भागवत के पिताजी की संगठन क्षमता इस आंकड़े से समझ सकते हैं कि 1941 से 1948 के बीच उन्होंने गुजरात के 115 शहरों-कस्बों में संघ का संगठन खड़ा कर दिया था. 1943-44 में उन्हें गुरु गोलवलकर ने उत्तर भारत और सिंध (अब पाकिस्तान में) के कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण का जिम्मा दिया, लाल कृष्ण आडवाणी भी उनमें से एक थे. 1984 में जब नागपुर से आडवाणी प्रचार करने निकले तो समय निकालकर मधुकर राव से भी मिलने उनके घर पहुंचे थे.Advertisementइधर मधुकर राव के भाई मनोहर की मृत्यु के बाद भी अकेले पड़े पिता ने अपने इस बेटे को वापस नहीं बुलाया. लेकिन जब मां गईं तो परिवार ने दवाब डाला और मधुकर राव को वापस जाना पड़ा और विवाह बंधन में भी बंधना पड़ा. हालांकि विवाह के बाद भी वो लगातार विवाहित प्रचारकों की तरह गुजरात आते रहे और संघ को खड़ा करने के लिए लगे रहे. उनकी सक्रियता बाद में चंद्रपुर में बढ़ गई. अपने पिता की तरह उन्होंने भी अपने बेटे, मोहन भागवत को संघ को समर्पित कर दिया और आज मोहन भागवत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक हैं.पिछली कहानी: 'नमो मातृभूमि' से कैसे बनी 'नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे...' 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